
राज्य सरकार जब किसी अधिकारी को मुसलसल उगाही का अघोषित जरिया मान लेती है तो अंजाने ही उसे असीमित अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाते हैं । जिसके जरिए वह अन्य छोटे मोटे अधिकारियों को साथ लेकर कोई भी भ्रष्ट पटकथा लिख सकता है।
यूं तो तमाम सरकारी और ग़ैरसरकारी कामों में बाहुबलियों और टटपुँजियों के वर्चस्व को ख़त्म करने और पारदर्शी बनाने के लिए टेंडर ( निविदा ) प्रक्रियाओं का स्वरूप बदल ई-टेंडरिंग व्यवस्था अमल में लाई गई । पर महारथी तो महारथी होते हैं, वो शासकों या टटपुँजियों के हितार्थ रिस्क लेने का माद्दा भी रखते हैं । खनन विभाग में भी एक ऐसे ही महारथी हैं राजकुमार लेघा साहब । अपर निदेशक भूतत्व एवम खनिकर्म के पद पर आसीन राजपाल लेघा ने यहाँ खननकर्म के खेल को नई नीतियां गढ़ डाली । यह तो साफ है कि कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए लेघा साहेब ने कुछ उपजिलाधिकारियों को भी विश्वास में लिया और कर डाली अपने मन जैसी ।जिसके चलते विरोध हुआ और मामला न्यायालय की दहलीज में पहुंच गया । मामले की छानबीन करती संजय रावत की यह रिपोर्ट…
यह मामला है कुमाऊं मंडल विकास निगम लि0 के उस खनन पट्टे का, जिसे राजपाल लेघा जी ने अपने प्रिय को पिछले दामों से भी कम दामों पर दिलाने के लिए सांठ-गांठ के तहत ऐसा सुनियोजित खेल खेला कि उक्त खनन पट्टा उसी के नाम हो गया जिसके हितार्थ व्यूहरचना की गई थी । जिसके लिए महारथी ने एक मामूली ओपचारिकता को ही ब्रह्मास्त्र बना व्यूहरचना कर डाली । इस ब्रह्मास्त्र का नाम था ‘अदेयता प्रमाण पत्र’, इसी अस्त्र ने मैदान में सभी दूसरे योद्धाओं को दौड़ा दौड़ा के चित्त कर दिया ।

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मामला कुछ यूं था
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल विकास निगम लि0 को आवंटित राजस्व लॉट भौर्सा, जमरानी में 8 हेक्टेयर उप खनिज चुगान हेतु ई- टेंडर 24 अक्टूबर 2022 को 11 बजे प्रकाशित किया जाता है जिसे डाउनलोड करने की तिथि 24 अक्टूबर 2022 को 12 बजे, तथा ऑनलाइन बिड अपलोड करने की प्रारंभिक व अंतिम थी क्रमशः 31 अक्तूबर 2022 को 2 बजे व 7 नवम्बर 2022 को 5 बजे तय की जाती है ।
जिसके बाद सारे निविदाकारों ने कुमाऊं मंड़ल विकास निगम लि0 द्वारा तय निविदा शर्तों के अनुसार प्रपत्र जुटा कर अदेयता प्रमाण पत्र के लिए खनन कार्यालय पहुंचे तो लेघा साहब ने नई घोषणा कर दी कि मुझे राजस्व का अदेयता पत्र तहसीलदार के बजाए उपजिलाधिकारी के कार्यालय का चाहिए । जिसके लिए उन्होंने 2 नवंबर को एक पत्र भी जारी कर दिया । इस नियमविरुद्ध आदेश से हड़कंप मच गया और समयाभाव देखते हुए लोग अपने अपने क्षेत्रों के उपजिलाधिकारी के पास पहुंचे । जहां उपजिलाधिकारी या तो अपने कार्यालय में नहीं मिले और मिले भी तो यह कार्यक्षेत्र तहसीलदार का बताते हुए टाल गए । अधिक दबाव के चलते उपजिलाधिकारियों ने कहा कि चलो हम ही बना देंगे अदेयता पत्र पर सभी को अपने अपने क्षेत्रों के संग्रह अमीनों से अदेयता संबंधी रिपोर्ट लानी होगी । यहां बताते चलें कि एक तहसील में लगभग 15 से 20 अमीन होते हैं जो कार्यालय की बजाए अधिकतर फील्ड पर ही रहते हैं । समयाभाव और अमीनों की गैरहाजरी की वजह से किसी का काम समय से न हो सका । जिसके चलते अधिकांश निविदाकर्ताओं को अदेयता प्रमाण पत्र टेंडर पड़ने के समय ही जारी हो पाया, जो वेबसाइट पर तो अपलोड हो गए पर भौतिक रूप से टेंडर बॉक्स में नहीं पड़ सके । इससे रुष्ट कुछ निविदाकर्ता उच्च न्यायालय की शरण में गए जहां न्यायालय ने 5 जनवरी 2022 को सभी संबंधित पक्षों को सुनने की बात कही है ।

चक्रव्यूह की रचना पर एक नजर
बेशक यह बात कही जा सकती है कि राजपाल लेघा साहब के चक्रव्यूह में सबसे ज्यादा सहायक कुमाऊं मंडल विकास निगम ल. की उदासीनता थी ।क्यूंकि कु.म. वि.नि.ने टेंडर 24 अक्टूबर 2022 को दीपावली के दिन प्रकाशित किया, फिर 25 और 26 अक्टूबर को राजकीय अवकाश था ।
27 – 28 को अवकाश की खुमारी में अधिकारीगण मिले नहीं, 29 और 30 अक्तूबर को फिर अवकाश । उसके बाद 31 अक्टूबर और 1 नवंबर से निविदाकर्ता वांछित प्रपत्र जुटाने लगे, व्यूहरचना के मुताबिक 2 नवंबर को ही कयामत का दिन तय था जब अपर निदेशक – भूतत्व एवं खनिकर्म इकाई के राजपाल लेघा द्वारा जारी पत्रांक संख्या 997/भू0ख नि0ई0/रि0ड्रे0/2022-23 के तहत ब्रह्मास्त्र छोड़ा गया जिसका किसी तरह का कोई ताल्लुक मूल निविदा से नहीं था । फिर 4 नवंबर को ईगास का अवकाश, 5 नवंबर को शनिवार के चलते अधिकांश अधिकारी कर्मचारीगण गैरहाजिर थे, 6 नवंबर इतवार और 7 नवंबर को आ गया चक्रव्यूह का अंतिम चक्र, जिसमें वही 5 निविदाकर्ता प्रतिभाग कर पाए जिनमें से एक के लिए व्यूहरचना की गई थी ।

खामियाजा भुगतना होगा कुमाऊं मंडल विकास निगम लि. को ही
गाहे बगाहे बजट का रोना रोने वाले कु. म. वि. नि. लि0 को इस कवायद से बड़ा वित्तीय नुकसान होना तय है । क्योंकि यही टेंडर जब पूर्व में निरस्त किया गया था तब निगम के बेस रेट थे 95₹/टन जिसके एवज में सफल निविदाकर्ता ने रेट दिए थे 280₹/टन । लेकिन इस बार षड्यंत्र के तहत सफल निविदाकर्ता ने रेट दिए हैं 151₹/टन, जबकि निगम का बेस रेट वही पुराना था । यानी इस बार निगम ने 129₹/टन का घाटा सहर्ष स्वीकार किया है । कायदेनुसार तो टेंडर कैंसिल कर रिटेंडर होना चाहिए था । पर ऐसा ना किए जाने के पीछे दो चर्चाओं से खनन बाजार गर्म है – पहला कि चक्रव्यूह रचना के लिए 5 करोड़ ₹ अफसर मैनेज करने को खर्च किए गए हैं । दूसरा यह कि लेघा साहब की कोई संवेदनशील नस सफल ‘संगठित निविदाकर्ताओं’ के हाथ लग गई है ।

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ऐसे होगा निगम को नुक्सान
जैसा कि निगम ने 8 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 162000 ( एक लाख बासठ हजार ) टन प्रति वर्ष चुगान तय किया है । निगम ने बेस रेट रखे 95 ₹/टन जिसमें निरस्त किए टेंडर के रेट थे 280 ₹/टन के, पर सारी सैटिंग से टेंडर पास हुआ मात्र 151 ₹/टन में । सैटिंग ना होती तो यह रेट कम से कम पिछले ( 280 ₹/टन ) से ज्यादा ही आता । खैर …
280 – 151 = 129 ₹/टन का नुकसान । अब 129 ₹/टन × 162000 / वर्ष = 20898000 ₹ का प्रतिवर्ष का नुकसान । चुगान अवधि है 4.5 वर्ष तो 20898000 × 4.5 = 94041000 ₹ ( नॉ करोड़ चालीस लाख इकतालीस हजार ) का कुल नुक्सान ।
पहले से ही नुकसान में चल रहे कुमाऊं मंडल विकास निगम लि0 के अफसरान का गणित यदि ठीक होता इस बड़ी रकम से निगम अपने जीर्ण शीर्ण पड़े ‘पर्यटक आवास गृहों’ की मरम्मत करा लीज पर दे और मुनाफा कमा सकता था । पर अपर निदेशक खनन राजपाल लेघा साहब के चक्रव्यूह ने अपने चहेतों के मुनाफे की खातिर निगम को और ज्यादा नुक्सान में डाल दिया ।