उत्तराखण्ड की हेमलता बगडवाल गुप्ता भारतीय सीनियर महिला बॉक्सिंग टीम की कोच हैं । भारत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर जीत दिलाने और खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन में उनका बड़ा योगदान है । शीर्ष खिलाड़ी मैरी कॉम और अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की स्पेशियल ट्रेनिंग के लिए भारत में उन्ही को चुना गया । हेमलता की बॉक्सिंग यात्रा पर संजय रावत से हुए लंबे संवाद के कुछ अंश –
आप उत्तराखण्ड से आती हैं, अपनी पृष्टभूमि के बारे में हमारे पाठकों को कुछ बताइए ।
मैं उत्तराखंड में अल्मोड़ा से हूं, मेरे पिता ‘बेस चिकित्सालय अल्मोड़ा’ कैम्पस में कार्यरत थे । मेरा जन्म, स्कूली शिक्षा भी वहीं हुई, वहीं ( कुमाऊं विश्विद्यालय ) से ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन भी किया ।
ये बॉक्सिंग में भविष्य तलाशने का मन कैसे बना ।
ये तो शायद नियति थी । मैं भारतीय सेना में जाने का सपना देखती थी, क्योंकि परिवार में अधिकांश लोग सेना में ही थे । इसलिए मुझे मालूम था कि सेना में जाने के लिए स्पोर्ट्स बहुत जरूरी है, और फिर शुरू हो गया दौड़ और खेल का सिलसिला । अल्मोड़ा खेल परिसर में होने वाले तकरीबन सारे खेलों में मैंने भागीदारी की, बॉलीबाल तो नेशनल तक खेला । वहां ‘जिला क्रीड़ा अधिकारी’ थे श्री डी पी भट्ट जी, उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि तुम अच्छी खिलाड़ी हो बॉक्सिंग जॉइन करो । इस तरह वर्ष 1999 में पहली बार रिंग में उतरी और वर्ष 2000 में महिला नेशनल टीम में सलेक्शन हो गया और बेस्ट बॉक्सर अवार्ड पाया । फिर तो बॉक्सिंग सर चढ़ के बोलने लगी और वर्ष 2003 – 4 में मैंने NIS ( नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स ) भी क्लियर कर लिया ।
तो NIS के बाद जल्द कोचिंग का रुख कर लिया आपने । अभी किस पद पर हैं आप ।
वर्ष 2004 में मुझे एक कैम्प के लिए बतौर कोच बुलाया गया और यहीं से लाइन बदल गई । 2004 से 2014 तक मैं सीनियर महिला बॉक्सिंग टीम की कोच रही । इस बीच 2007 में ‘स्पोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ के तहत कॉन्टेक्ट पर विशाखापत्तनम पोस्टिंग हुई, फिर 2014 में परमानेंट कोच बन गई ।
इस महिला सीनियर टीम में किन किन खिलाड़ियों को कोचिंग दी आपने ।
ये लो लंबी फेहरिस्त हो जाएगी । फिर भी नेशनल – इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं के लिए मैरी कॉम, पिंकी डागरा, जैनी आर एल, लेखा के सी, कविता गोयल, पिंकी रानी, प्रियंका चौधरी और कमला बिष्ट थे जिन्हें मेन अचीवर कहेंगे ।
फ़िल्म ‘मैरी कॉम’ में प्रियंका चोपड़ा की ट्रेनिंग के लिए कैसे चुनाव हुआ आपका ।
फ़िल्म के डायरेक्टर मुझसे मिलने आए थे । उन्होंने मैरी कॉम फ़िल्म के बारे में बताया, रिंग में मैरी कॉम की प्रेक्टिस और परफॉर्मेंस पर बात की और कहा कि प्रियंका चोपड़ा को आप ट्रेनिंग दीजिए ।
फिल्मी हस्तियां खास तौर पर स्टार्स कुछ नखचढे होते हैं ऐसा माना जाता है । ट्रेनिंग के दौरान प्रियंका चोपड़ा के साथ आपके अनुभव कैसे रहे ।
पहले तो मुझे भी ऐसी ही शंका थी । मैं उसे गोवा में उसके घर पर मिली, वह मुझसे हनी मैम ( मेरा निक नेम ) कह कर मिली । पहली मीटिंग में मैंने साफ करना ठीक समझा कि, मैं तुम्हें प्रियंका जी – प्रियंका जी कह कर नहीं बुला पाऊंगी । प्रेक्टिस के वख्त तुम मेरी स्टूडेंट और मैं तुम्हारी कोच, तभी बेहतर नतीजे सामने आ पाएंगे , तो उसने भी ऐसा ही व्यवहार रखा । अच्छी स्टूडेंट की तरह सारी बातें मानी और प्रेक्टिस करती रही । एक बात और हुई कि उन लोगों को एयरकंडीशनर जिम की आदत होती है जिसके लिए मैं राजी नहीं थी, तो आसानी से मान गई । जैसे आम तौर पर खिलाड़ी प्रेक्टिस करते हैं वैसे ही प्रेक्टिस की । मुझसे बोली भी कि मैम आज पहली बार मेरे कपड़े पसीने में भीगे हुए हैं । बहुत प्रोफेशनल है वह । रात 12 बजे शूटिंग से लौटती थी फिर भी सुबह 6 बजे प्रेक्टिस के लिए हाजिर हो जाती थी ।
मेरा मानना है कि अच्छा कोच होना और अच्छा परफॉर्मर होना दोनों अलग अलग बातें हैं । ये जरूरी नहीं कि अच्छा खिलाड़ी, एक अच्छा कोच भी हो और एक अच्छा कोच, अच्छा खिलाड़ी भी हो ।
बिल्कुल । मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ । मेरा अनुभव रहा है कि बहुत अच्छे परफॉर्मर जब कोचिंग लाइन में आए तो वे उतने सफल नहीं हुए । दरअसल जो अच्छे परफॉर्मर या गोल्डमेडिलिस्ट होते हैं उनका अपना एक माइंड सेट होता है । वो किसी भी खिलाड़ी को अपनी तरह ढालने की कोशिश करते हैं जो सम्भव ही नहीं है । क्योंकि सबकी स्किल्स एक सी नहीं होती हैं । जैसे किताबी पढ़ाई और व्यवहारिक जीवन बिल्कुल अलग अलग बातें हैं । कोच की असल प्रतिभा इस बात पर है कि वह अलग अलग स्किल्स वाले स्टूडेंट्स से किसी भी तकनीक को अचीव करवा ले ।
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय ख़िलाड़ियों के व्यवहार को देख कर कई बार ऐसा महसूस होता है जैसे वो सब कुछ जान गए हों और अब कुछ जानने को बांकी नहीं बचा ।
ऐसा भी होता है मगर बहुत कम । मेरा अपना मानना है कि चीजें, तकनीक बहुत तेजी से बदल रही हैं । जिन नियमों और तकनीक के साथ हमारे सीनियर्स खलते थे, उनके और हमारे खेल में बहुत अंतर है । जो अब आ रहे हैं उनके और हमारे खेल में भी बहुत अंतर आ चुका है । सुरक्षा की दृष्टि से नियम और तकनीक बहुत तेजी से बदल रहे हैं । जैसे पहले नॉक आउट बहुत होते थे, हमारे समय में कम हो गए । RSE डिसिजन्स हैं कि नॉक आउट अब बिल्कुल नहीं होते । आप देखिएगा सारे खेल अब टेक्निकल हो गए है । बॉक्सिंग पहले पावर गेम था, अब बिल्कुल टेक्निकल हो गया है । पुराने कोच अनजाने ये कह सकते थे कि रिंग में जाना है और सामने वाले को गिरा देना है । अब यह सब नहीं सिखाया जाता । अब हम सिखाते हैं कि तुमने स्कोर करना है । प्वाइंट देने नहीं हैं बल्कि लेने हैं ।
एक आंखरी सवाल । मैरी कॉम एक आदिवासी इलाके से आती हैं, अपनी हिम्मत, जिद और कौशल के दम पर दुनियां भर में ख्याति पाती हैं । पर उन पर जब फ़िल्म बनती है तो उनके किरदार में एक खूबसूरत महिला को दिखाया जाता है । इस पर आपका क्या मत है ।
ये सवाल तो बहुत गंभीर है । बोलूंगी तो बात बहुत लंबी हो जाएगी । सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि किसी फिल्म मेकर से आदर्श सामाजिक मूल्यों की अपेक्षा करना ठीक नहीं है । क्योंकि उसे हमसे ज्यादा पता है कि उसने जिस फ़िल्म में निवेश किया है वो मुनाफे के साथ वापस कैसे आएगा । इतना काफी है कि उसने महिला प्रधान फ़िल्म बनाने का रिस्क तो लिया ही है ।
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बहुत शानदार
खेल से जुड़े हुए लेख के हिसाब से बेहद सधा हुआ और हर सवाल जरूरी था, आशा करता हूं ऐसे ही प्रेरणादायक और भी लेख सामने आते रहेंगे