कंपनी पर होना चाहिए हत्या का मुकदमा
उत्तराखंड में कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट अब किसी विभाग या संबंधित मंत्रालय के अधीन नहीं बल्कि केंद्र सरकार के इशारों पर निर्भर है। ऐसे में एक इंसान की मौत हो या बड़े समूह की, इससे राज्य सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता। तब भी छोटे समझे जाने वाले हादसे किसी बड़े प्रोजेक्ट की कलई दर कलई खोल सकते हैं। यह न कार्यदायी संस्थाएं समझ पाती हैं न ही वो कंपनी, जिसके साथ उनकी डीपीआर पर एमओयू साझा होता है।
हालिया खबर यानी 4 जुलाई के मुताबिक हल्द्वानी के हरिपुर ज़मन सिंह इंटर कालेज के पास टिप्पर कहे जाने वाले वाहन से एक व्यक्ति की भयावह मौत से जुड़ी है। इस मौत को एक हादसे के रूप में पुलिस ने बढ़िया ढंग से ऐसे प्रचारित किया मानो ये वाकई अप्रत्याशित घटना हो। पर यथार्थ इसके बिलकुल उलट निकाला। अन्वेषण करने गई जब हमारी टीम ने यह जानना चाहा कि बरसात के मौसम में जब अधिकांश वाहन टैक्स बचाने के लिए आरटीओ विभाग से सरेंडर हो जाते हैं तो एक वाहन कैसे इतनी तेजी से लोडिंग-अनलोडिंग में मशरूफ है, जबकि सरकार ने मानसून सीज़न में उपखनिज एकत्र करने पर रोक लगा रखी है। फिर यह वाहन किसके भरोसे कहां से कहां को उपखनिज ले जा रहा होगा ।
इस बीच ध्यान हो आया कि नजदीक ही रकसीया नाले से होने वाली हर साल की तबाही को रोकने के लिए अलग – अलग कार्यों हेतु करीब 560 करोड़ ₹ की लागत का कोई प्रोजेक्ट चल रहा है। जिसकी कार्यदाई संस्था शहरी विकास प्राधिकरण है, जो यूयूएसडीए ( उत्तराखंड अर्बन सेक्टर डिवेलैपमेंट एजेंसी ) यानी उत्तराखंड शहरी क्षेत्र विकास एजेंसी के मातहत कार्य करती है। उस मजदूर की मौत का सीधा कनेक्शन हमें यहां से दिखाई दिया, जहां कई सारे महत्वपूर्ण मानकों के बावजूद जानबूझ कर कई शिथिल कार्यवाहियां अमल में लाई गई मालूम होती हैं।
यूं तो यह कार्य टेंडर प्रक्रिया के तहत अहमदाबाद (गुजरात) की एक कंपनी बी.आई.पी.एल. के हवाले करीब तीन महीने पहले किया गया है, पर रकसीया नाले से निकलने वाले उपखनिज को एकत्र करने के लिए डमपिंग जोन का मामला ही कई सवाल लिए खड़ा है। ज्ञात हो कि यह स्वीकृति प्रशासन द्वारा कई संभावनाओं, घटना-दुर्घटनाओं को ध्यान में रख खास मानकों के तहत प्रदान की जाती है। प्रशासन ने सब देखते हुए इसकी अनुमति जहां दी है, ये कंपनी वहां डमपिंग न कर किसी प्लाउटिंग वाले निजी एरिया में खुदा हुआ उपखनिज डम्प कर रही है। ताकि बिना पैमाईश के उपखनिज की कालाबाजारी की जा सके। यह साफ है कि 4 जुलाई को जिस टिप्पर से युवक की मौत हुई वो वाहन यहीं से उपखनिज चोरी छिपे तेज रफ्तार से ले जा था ।
प्रोजेक्ट कंपनी द्वारा मानकों की अवहेलना और कालाबाजारी ही मात्र एक वजह है जिससे उस 37 वर्षीय युवक की असमय मौत हो गई। खोजबीन के दौरान हमने उस वाहन चालक से सम्बन्धित पुलिस चौकी में जब यह पूछा कि अब तो निजी तौर पर उपखनियज डम्प करने की इजाजत नहीं है तो उसने बताया कि वह प्रेमपुर लोशज्ञानी के सरकारी डमपिंग जोन से ला रहा था। ऐसी स्थिति में दोष उक्त कंपनी का नजर आता है जो उस युवक की मौत की जिम्मेदार है। ऐसे में प्रशासन को हत्या का मुकदमा बी.आई.पी.एल. कम्पनी पर करना अपरिहार्य लगता है। प्रशासन को यह भी करना चाहिए कि कार्य में कोताही बरतने के ऐवज में इस कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर शेष कार्य को दुबारा टेंडर निकालें।