रामनगर। वन पंचायत संघर्ष मोर्चा द्वारा वन अधिकार कानून को लेकर रविवार को रामनगर में कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों से आए वन पंचायतों के सरपंच, गोठ, खत्तों, वन ग्रामों, गूजर बस्तियों के निवासियों ने भागीदारी की। उत्तराखंड में वन अधिकारों की वर्तमान स्थिति तथा वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा कि राज्य में वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन की स्थिति बेहद निराशाजनक है। पिछले 18 वर्षों से बनवासियों के वन अधिकार के दावे लंबित हैं। सरकार एवं वन विभाग वनाश्रित समाज के परंपरागत अधिकारों पर कुठाराघात करके उन्हें बेदखल करने की कार्रवाई कर रहा है जो की गैर कानूनी तथा उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन है। कार्यशाला में वक्ताओं ने समस्त वन ग्रामों को राजस्व गांव का दर्जा दिए जाने तथा वन अधिकार कानून के तहत प्रशासन को दिए गए समस्त लंबित दावों का शीघ्र निस्तारण करने की मांग की मांग की। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि वन पंचायत संघर्ष मोर्चा द्वारा बिंदुखत्ता की तरह अन्य वन ग्रामों को भी राजस्व गांव बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा। बैठक में वन पंचायतों के सशक्तिकरण हेतु दिसंबर माह में प्रदेश में यात्रा, बैठके व गोष्ठियां आयोजित करने का निर्णय लेते हुए उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे जंगली जानवरों के आतंक से निजात दिलाने हेतु कारगर कदम उठाने की मांग भी की गई। इस मौके पर विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रतिनिधियों ने अपनी अपनी परेशानियों व अनुभवों को भी साझा किया। बैठक में वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के संयोजक तरुण जोशी, गोपाल लोधियाल, अल्मोड़ा बिनसर सेंचुरी से ईश्वर जोशी, अस्कोट अभयारण्य से खीमा वन, पंचायत संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष दान सिंह कठायत, वन गूजर समुदाय के प्रतिनिधि मोहम्मद शफी, पूर्वी तराई डिविजन के अध्यक्ष मोहम्मद कासिम, तराई केंद्रीय डिवीजन से मोहम्मद शरीफ, तराई पश्चिमी डिवीजन के अध्यक्ष मोहम्मद कासिम, बिंदु खत्ता से भुवन भट्ट, बसंत पांडे, बागेश्वर पिंडारी से मोहन दानू, महिला एकता मंच से सरस्वती जोशी, हेमा जोशी भीमताल से जगदीश चंद मुक्तेश्वर, समाजवादी लोक मंच से मुनीष कुमार,वन गांव पूछडी रमेश चन्द्र , अंजलि रावत, घनानंद ममगाईं, किसान संघर्ष समिति के ललित उप्रेती आदि शामिल रहे।