सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि वैश्विक संकट कोरोना वायरस के संक्रमण से देश कारागारों में बंद कैदियों के बचाव के लिए पहल अमल में लाई जाए… संजय रावत की रिपोर्ट जनज्वार। कोरोना वायरस (COVID-19) की महामारी को रोकने के लिए भारत में इस सय तीन सप्ताह के लिए दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन किया गया है। बावजूद इसके कोरोना वायरस के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। भारत में सोशल डिस्टेंस की पॉलिसी को इसलिए अमल में लाया गया है ताकि कोरोनावायरस संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ा जा सके लेकिन यह भी कारगर सिद्ध नहीं हो पाई है। इन हालातों के मद्देनजर अलग-अलग राज्यों में अपने-अपने तरीके तरीके से नीतियां बनाई जा रही हैं। Also Read – UP की धरती से तालिबान को सिर चढ़ाने की छूट नहीं, CM योगी बोले-राम, कृष्ण और बाबा विश्वनाथ से ही जाना जाएगा यूपी वहीं एक सू-मोटो पिटिशन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि वैश्विक संकट कोरोना वायरस के संक्रमण से देश कारागारों में बंद कैदियों के बचाव के लिए पहल अमल में लाई जाए। कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि जिन सजायाफ्ता और विचाराधीन मामले में सात या उससे कम की सजा दी गई है या छोटे अपराध में मुकदमे का सामना कर रहे हैं तो ऐसे कैदियों को इस संक्रमण के बचाव के लिए निगरानी पर रखते हुए पैरोल या अंतरिम जमानत दी जा सकती है। संबंधित खबर : लॉकडाउन से मुश्किलों भरा सफर, हजारों की संख्या में कोई घंटों पैदल चला तो कोई कई दिन रहा भूखा सुप्रीम कोर्ट की ओर से सभी राज्यों को निर्देश दिए गए हैं कि वह अपने राज्यों में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करें जो यह निर्णय लें कि किन सजायाफ्ता और विचाराधानी कैदियों को उनके अपराध और व्यवहार के आधार पर पैरोल या अंतरिम जमानत दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उत्तराखंड में एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है जिसमें जस्टिस सुंधाशू धुलिया, प्रमुख सचिव, सदस्य और महानिदेशक (कारागार) सदस्य नियुक्त किए गए हैं।
उच्चस्तरीय समिति द्वारा जिलों में ‘संचालित ‘जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों’ के जरिए सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदियों के ब्योरा मांगा गया है जिसके आधार पर उत्तराखण्ड राज्य के कारागारों में उक्त कैदियों पैरोल या अंतरिम जमानत दी जा सके। उत्तराखण्ड में इस तरह के कैदियों की कुल संख्या 891 (264 सजायाफ्ता और 627 विचाराधीन) बताई जा रही है जो अपने अपराध और व्यवहार के आधार पर फिलहाल पैरोल या अंतरिम जमानत दिए जाने की परिधि में आते हैं। इसके अलावा उच्च स्तरीय समिति द्वारा यह भी पाया गया कि इन कैदियों में से कुल 36 कैदी वर्तमान में ऐसे है जोकि अस्वस्थ है, जिन पर फिलहाल पैरोल या अंतरिम जमानत दिये जाने पर अभी कोई विचार किया जाना उचित नहीं है। हालांकि इन अस्वस्थ कैदियों के स्वस्थ होने के बाद उन पर विचार किया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति द्वारा इन सभी तथ्यों के आधार पर कुछ फैसले पारित किए गए हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं- 1- वर्तमान में उत्तराखण्ड राज्य के कारागारों में सजायाफ्ता और विचाराधीन कुल 855 ऐसे कैदी जिनको किसी मामले में सात साल या उससे कम की सजा दी गयी है या छोटे अपराधों में मुकदमे का सामना कर रहे है को उनके अपराध और व्यवहार के आधार पर फिलहाल छः माह के लिए पैरोल या अंतरिम जमानत दी जा सकती है।
2 – उपरोक्त के अतिरिक्त कुल 36 कैदी जोकि वर्तमान में अस्वस्थ है, पर फिलहाल पैरोल या अंतरिम जमानत दिये जाने पर अभी कोई विचार किया जाना उचित नहीं है। हालांकि उपरोक्त अस्वस्थ कैदियों के स्वस्थ होने के उपरान्त उन पर विचार किया जायेगा। कारागार प्रशासन को निर्देशित किया गया कि वह उपरोक्त अस्वस्थ सभी 36 कैदियों का पूर्ण उपचार करना सुनिश्चित करे। साथ ही उनको आइसोलेशन में रखे जाने हेतु स्वास्थय विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का भी पालन करना सुनिश्चित करें।3 – पैरोल या अंतरिम जमानत का प्रार्थना पत्र जेल प्रशासन द्वारा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सहायता से राज्य सरकार या सम्बन्धित न्यायालय को भेजे जाएंगे। प्रार्थना पत्र ऑनलाईन भरे जाएंगे, ताकि केन्द्र सरकार की सोशल डिस्टेंसिंग पॉलिसी का अनुपालन किया जा सके और न्यायालय एवं शासकीय कार्यालय में भीड़ इकठा न हो।
4 – जिला न्यायाधीश द्वारा लाभान्वित कैदियों की ओर से मिले जमानत प्रार्थना पत्रों की ऑनलाईन सुनवाई के लिए जरूरी व्यवस्था सुनिश्चित की जायेगी।
5 – सम्बन्धित न्यायालय द्वारा यह सुनिश्चित किया जायेगा कि वह सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत उनके व्यक्तिगत बॉन्ड पर, बिना किसी बंधपत्र के रिहा करें, ताकि केन्द्र सरकार द्वारा निर्गत सोशल डिस्टेंनसिंग पॉलिसी का अनुपालन किया जा सके।
– गृह सचिव उत्तराखण्ड सरकार को निर्देशित किया गया कि वह संबंधित कारागार प्रशासन को ऑनलाइन दिशा-निर्देश जारी करें कि वह विचाराधीन कैदियों को छः माह को पैरोल पर रिहा करें। संबंधित खबर : भाजपा नेता ने पैदल घर जा रहे मजदूरों का उड़ाया क्रूर मजाक, कहा ‘छुट्टी’ मनाने जा रहे
7 – जिलाधिकारी एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक पैरोल पर रिहा होने वाले कैदियों को कारागार से उनके स्थानों तक पहुंचने की व्यवस्था सुनिश्चित करेंगे। जिलाधिकारी एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक यह भी सुनिश्चत करेंगे कि पैरोल पर रिहा होने वाले कैदियों को कारागार से उनके स्थानों तक पहुचाने की प्रक्रिया में सरकार द्वारा लगाये गये लॉकडाउन के नियमों का उल्लघंन न हो और साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग पॉलिसी का भी पूर्णतः अनुपालन किया जा सके।
8 – सम्बन्धित जनपदों के मुख्य चिकित्साधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि पैरोल पर रिहा होने वाले कैदियों का पूर्ण चिकित्सीय जांच हो।