पांच दिन की फजीहत, फिर वैसे ही दिन – रात

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किसी कस्बे को जब सीधे महानगर बनने की दौड़ में शामिल कर दिया जाता है तो वो कई असामाजिक और अनैतिक बीमारियों को साथ ले आता है । फिर सारा अमला अपने दूसरे दायित्व छोड़ इन्ही से जूझता रहता है । ये एक दो रोज की बात नहीं होती बल्कि दशकों माथापच्चीसी के बाद इनको उसी हाल में छोड़ देना पड़ता है जिस हाल में ये चलते चले आरहे होते हैं ।

सीधे मामले पर बात करें तो 14 अक्टूबर को हल्द्वानी पुलिस ने बड़े लावलश्कर के साथ शहर में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए 15 ‘स्पा सेंटर’ में छापे मार वहाँ सेवा दे रही करीब दस युवतियों को गिरफ्तार कर ‘वन स्टॉप सेंटर’ भेज दिया । इस छापे मारी में पुलिस की चौदह टीमें बनाई गई जिन्होंने अनैतिक देह व्यापार के नाम पर युवतियों को गिरफ्तार कर स्पा सेंटर्स का चालान भी किया । अब सवाल यह है कि ऐसी कार्यहीयों से समाज का कुछ भला होगा, क्या स्पा सेंटर्स पूरी तरह अवैध घोषित कर बंद किए जा सकेंगे, क्या वहां सेवा दे रही नवयौवनाओं  को देह व्यापार करने से रोका जा सकेगा, क्या इस तरह की कार्यवाहियां अनैतिक देह व्यापार उन्मूलन के सुसंगत हैं या फिर इन कामों में मजबूरन शामिल महिलाओं के जीवन को एक सम्मानजनक राह दिखाने की कोई व्यवस्था की जा सकेगी ।

ऐसा कुछ भी होना अभी दूर तक नजर नहीं आता है । चूंकि ऐसी कोई नीति ही नहीं बनाई गई है जिससे इस तरह के संस्थानों को चलने या बंद करने की बात साफ होती हो । पृथक राज्य बनने के बाद अभी तक जब ‘मानसिक स्वास्थ्य नीति’ ही नहीं बनी जबकि राज्य में मानो रोगियों की संख्या का आंकड़ा करीब 20 लाख पार कर गया है तो इन मसलों पर कहाँ कोई नीति बननी है । पुलिस, स्पा सेंटर संचालकों और वन स्टॉप सेंटर  में विवेचना के बाद प्रस्तुत यह रिपोर्ट ।

क्या बला है स्पा

स्पा एक लैटिन शब्द है जो बेल्जियम के एक गांव के नाम पर रखा गया, जहां युद्ध के दौरान  रोमन सैनिकों द्वारा गर्म खनिज का इस्तेमाल घावों और मांसपेशियों के दर्द से निजात पाने को किया जाता था । धीरे धीरे इसका स्वरूप बदलता चला गया, फिर इंग्लैंड और अन्य जगह झरने और लौहयुक्त पानी से ईलाज को स्पा का नाम दिया गया जो फिर दुनियां भर की ऐशगाहों में स्थापित होता रहा । आज भी स्पा का मतलब मांसपेशियों के दर्द का ईलाज ही है पर उपभोगतवाद ने इसका रूप पूरी तरह बदल दिया है जो  दर्द निवारण पर केंद्रित न हो कर देह सुख पर केंद्रित हो चला है ।

स्पा सेंटर बनाम पुलिस

हल्द्वानी शहर में कितने स्पा सेंटर हैं इसका अभी ठोस लेखाजोखा किसी के पास नहीं है, इसकी असल वजह यह है कि इसके संचालन के लिए किसी विभाग का निर्धारण नहीं हो सका है । पहले नगरनिगम ‘ब्यूटी पार्लर एन्ड स्पा सेंटर’ के नाम से लाइसेंस देता था पर करीब डेढ़ साल से इसका पंजीकरण तथा नवीनीकरण बंद कर दिया गया है । जबकि कायदे से इसका पंजीकरण नगरनिगम को ही करना चाहिए क्योंकि ये एक चिकित्सा पद्धति का रूप है और चिकित्सालयों का पंजीकरण नगरनिगम के जिम्मे ही है । खैर पुलिस के हिसाब से शहर में पंद्रह स्पा सेंटर हैं, गूगल महाराज इनकी तादात सौ बताते हैं जबकि स्पा वाले उन्नीस सेंटर्स की बात कहते हैं । पुलिस कहती है कि यहां अनैतिक देह व्यापार होता है इसलिए हम समय समय पर या किसी शिकायत पर छापेमारी कर युवतियों को छुड़ा कर सुरक्षा की दृष्टि से  ‘वन स्टॉप सेंटर’ के हवाले कर आते हैं जहां पीड़ितों की देखभाल, काउंसलिंग और मुफ्त विधिक राय दी जाती है । इसके उलट स्पा सेंटर्स संचालकों का कहना है कि पुलिस कभी भी आ धमकती है उनके उग्र व्यवहार से सब सहम जाते हैं । फिर वो सबकी ‘पहचान पुष्टि का पंजीकरण’ देख जब्त कर लेते हैं और जबरन चालान कर जाते हैं । स्पा में सेवा दे रही युवतियों के साथ मार पिटाई और धमका कर कुछ भी पुष्ट करना आम बात है । मारपीट की आम घटना का उल्लेख करते हुए एक स्पा संचालक बताते हैं कि कुछ समय पूर्व ‘एंटी युह्मान ट्रेफिकिंग सेल’ की एक महिला दरोगा ने स्पा से लेजाकर  सरेराह एक युवती की पिटाई कर दी जिसका वीडियो वायरल होने के बाद दरोगा को लाइन हांजीर भी किया गया । अब मामले को और बेहतर तरीके से समझने के लिए ‘एंटी युह्मान ट्रेफिकिंग सेल’ और ‘वन स्टॉप सेंटर’ को जान लेना भी जरूरी है ।

क्या है ‘एंटी युह्मान ट्रेफिकिंग सेल’ और ‘वन स्टॉप सेंटर’

ये दोनों सरकारी संस्थाएं मूलतः महिला सुरक्षा के दृष्टिगत अस्तित्व में आयीं मगर दोनों के अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे से जुदा हैं । एक तरफ जहां ‘एंटी युह्मान ट्रैफिकिंग सेल’  मानव तस्करी जिसमें महिलाओं की खरीद फरोख्त पर अंकुश लगा उन्हें मुख्यधारा में शामिल करना है वहां ‘वन स्टॉप सेंटर’ उन महिलाओं की सहायता के लिए हैं जो घरेलू या किसी भी हिंसा का शिकार होती हैं । यहां भी उन्हें पांच दिनों से ज्यादा नहीं रखा जाता है मामला आपसी रजामंदी से सुलझ गया तो ठीक वर्ना न्यायालय को हस्तांतरित कर दिया जाता है । इन पांच दिनों के दौरान उनके लिए काउंसिलिंग, कानूनी सलाह और रहना खाना मुफ्त मिलता है ।

क्यों पड़ते हैं छापे और क्या होता है गिरफ्तारी के बाद

पुलिस की छापेमारी एक रूटीन का हिस्साभर नजर आती है क्योंकि स्पा से गिरफ्तार युवतियों को कुछ कागजी कार्यवाही के बाद ‘वन स्टॉप सेंटर’ ले जाया जाता है जबकि ये जगह उनके लिए है ही नहीं क्योंकि उनके साथ किसी तरह की हिंसा का कोई प्रमाण पुलिस के पास नहीं होता ।  जबकि लोकतांत्रिक तरीका यह है कि आरोपी महिलाओं को सिटी मजिस्ट्रेट या उपजिलाधिकारी के सम्मुख पेश किया जाए और उनके बयानों के आधार पर तय किया जाए कि  उचित राह क्या होगी । ये सिर्फ पुलिस और वन स्टॉप सेंटर की विवशता है कि स्पा से गिरफ्तार की युवतियों को वन स्टॉप सेंटर छोड़ना वह भी यह जानते हुए कि पांच दिन से ज्यादा वो उन्हें वन स्टॉप सेंटर में नहीं रख पाएंगे ।  गिरफ्तारी के लिए बड़े लावलश्कर और चौदह टीमों की भागदौड़ और कागज रंगने का नतीजा यह होता है कि पांच दिन के भीतर ही पुलिस को उक्त महिलाओं को उन्ही के सुपर्द करना पड़ता है जिनके स्पा सेंटर से उन्हें गिरफ्तार कर लाया गया था। इसके बाद जिंदगी फिर उसी ढर्रे पर चलती रहती है जहां से शुरू हुई थी ।

दरअसल स्पा सेंटर संचालन के लिए नीति नियंता जब तक कोई नीति और मानक नहीं बनाती तब तक पुलिस, वन स्टॉप सेंटर्स, स्पा संचालकों और वहां सेवाएं दे रही युवतियों की ऐसी ही परेड होती रहेगी ।

एक्स्ट्रा शॉर्ट्स

पूरी रिपोर्ट के दौरान कुछ चीजें अनायास ही ध्यान केंद्रित करने वाली थी । लग रहा था स्मार्ट और आधुनिक भारत में किन संस्थानों को कैसी गति प्राप्त है । स्पा सेंटर दिखने में आधुनिक और आकर्षक लग रहे थे तो वन स्टॉप सेंटर सामान्य सा घोंसला जिसे औपचारिकतावश बनाना व्यवस्था की मजबूरी रही हो । पर ‘एंटी युह्मान ट्रैफिकिंग सेल’ का कार्यालय अंधेरी सीढ़ियों से शुरू होता है जहां पहली मंजिल पर स्थित कार्यालय के बाहर मकड़ी के जाले न जाने कब से सफाई की दरख्वास्त लगाए बैठे हैं ।


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