संजय रावत
ईको टूरिज्म के नाम पर ‘उत्तराखंड वन विकास निगम’ खतरनाक खेल रहा है। भले ही यह खेल छोटे स्तर पर नजर आ रहे हैं पर निर्देश और दबाव देने वाले बड़े चेहरे अभी बेनकाब होने बांकी हैं। वाकिया है विश्व प्रसिद्ध ‘जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क’ (रामनगर, उत्तराखंड) में बिजरानी जोन (आम डंडा) का, जहां अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए सारे नियम मानक ताक पर रख अंदरखाने खेल खेल दिया गया।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद कांग्रेस सरकार के समय वन मंत्रालय की शब्दावली में अचानक एक शब्द का इजाफा हुआ, और यह शब्द था ईको टूरिज्म । इसकी आड़ में असल मकसद जंगलों को अपने मुताबिक मुनाफे का जरिया बनाना था जो डबल इंजन और जीरो टॉलरेंस सरकार में ज्यादा शातिराना तरीके से अमल में लाया जा रहा है।
पुख्ता जानकारी के मुताबिक आरक्षित वन क्षेत्र’ की अवधारणा को नकारते हुए, करीब दो दशक पहले एक के बाद एक, दो बड़े भूखंड नैनीताल निवासी सगीर खान को आवंटित किए गए। सगीर खान साहब का ईको टूरिज्म में क्या दखल है यह तो पता नहीं चल पाया पर 23 वर्षों बाद वर्ष 2024 के पहले महीने में उन्होंने अचानक एक भूभाग ( दो हेक्टेयर ) में काम करने से तौबा कर ली पर दूसरा भूभाग अपने पास ही रखा।
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ऐसा नहीं कि सगीर खान को कोई सपना आया हो या संवैधानिक तौर पर अवैध इस प्रॉपर्टी से कोई नुकसान हो रहा था। हुआ दरसल यह कि सगीर खान को आवंटित दोनो भूभागों पर एक कथित स्थानीय नेता की नजर पड़ चुकी थी, जो हर हाल में इसे पाना चाहता था। यह वही दौर था जब जंगलों से गुजरों को खदेड़ने के आदेश हुए, जब जंगलों से मजारें हटाई जा रही थी। इन हालातों के बीच हरीश सती नामक इस कथित भाजपा नेता को एक युक्ति सूझी और वह सगीर खान से मुलाकातें करने लगा। इन्ही मुलाकातों का यह अंजाम यह रहा कि सगीर खान ने 4 अक्तूबर 2023 को दो हेटेयर का एक भूभाग वन विकास निगम को यह लिख कर वापस कर दिया कि कुछ असमर्थताओ के चलते मैं इसके संचालन में असमर्थ हूं।
फिर क्या था अपने समर्थक के लिए सत्ता ने वन विकास निगम के अधिकारियों पर दबाव बनाना शुरू किया और बिना टेंडर के फर्जी तरीके से यह भूभाग हरीश सती की फर्म ‘निधिमा बेकर्स एंड हॉस्पिटालेटी’ को सौंप दिया। अब जनाब हरीश सती जी एग्रीमेंट की शर्तो को दरकिनार कर इसे संचालित कर रहे थे लेकिन मुनाफे की हवस के चलते उन्होंने लीज की बड़ी शर्त तोड़ते हुए इसे सबलेट कर दिया, यानी दिल्ली की किसी पार्टी को लीज पर दे दिया है। इस मसले पर सगीर खान और हरीश सती से जानकारी चाही तो सगीर खान का कहना था कि निगम का दबाव बढ़ता जा रहा थी कि सेल और बढ़ाई जाए जो बढ़ती उम्र के कारण मेरे बस का नहीं था। निर्माण के बारे में पूछने पर उनका कहना था कि वन निगम ने यह बना बनाया हमें दिया था और हरीश सती से जब पूछा गया कि यह टेंट कालोनी आपने लीज पर ली है इसे आगे किसी को लीज पर कैसे दे दिया, तो उनका कहना था कि ऐसा कहना पड़ता है । आगे के सावलों पर वो उखड़े नजर आए और पत्रकारिता पर लंबा भाषण दिया और कहा कि मेरे खिलाफ कुछ गलत लिखा तो मैं आप पर मुकदमा दायर करूंगा। लेकिन इन दोनों से पहले हमने संबंधित अधिकारियों से बात की, जानिए क्या कहते हैं अधिकारीगण
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क्या कहते हैं अधिकारीगण
कागजी तौर पर इस मामले पर प्रथम दृष्टया सबसे ज्यादा जल्दबाज दिखने वाले वन विकास निगम के अधिकारियों में जे. आर. आर्य नजर आते हैं। जिन्होंने ईको टूरिज्म के अनुभाग अधिकारी विद्यासागर को इस मामले में बकायदा निर्देशित किया कि आमडंडा के इस अस्थाई टेंट कालोनी को संचालित करने हेतु जल्द कार्यवाही करना सुनिश्चित करें । पर जे. आर. आर्य जी हमें अपने बयान में कुछ भी कहने से बचते रहे और यह कहते रहे कि बयान देने को मैं अधिकृत नहीं हूं। अंत में ये कहते हैं कि मैं तो इसे करने का इच्छुक ही नहीं था पर…
वन विकास निगम के दूसरे अधिकारी, शेर सिंह जी से बात की जो क्षेत्रीय प्रबंधक है। इनका कहना था कि ऐसे मामलों पर सबलेट नहीं किया जा सकता, मैं इसकी जांच करूंगा। आरक्षित वन क्षेत्र में उक्त स्थान पर बिजली कनेक्शन के सवाल पर वो कोई वैधानिक जवाब नहीं दे पाए कि आरक्षित वन भूमि में लीज होल्डर को बिजली का कनेक्शन लेने की इजाजत है या नहीं।
तीसरे अधिकारी के तौर पर हमने डी एफ ओ देगांत नायक जी से पूछा कि वन विभाग अपनी जमीन वन विकास निगम को भंडारण के लिए लीज पर देता है ऐसे में वन विकास निगम उस जमीन के एक हिस्से को कैसे किसी को लीज पर बढ़ा सकता है। पूरे उत्तराखंड भर में यह वाकया रामनगर में ही क्यों हुआ है। इस पर उनका कहना था कि अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय शायद कोई एम ओ यू हुआ था जिसकी पुख्ता जानकारी मुझे भी नहीं है।
अधिकारीगण और दोनों लीज होल्डर से बात कर ऐसा लगता है कि पूरे मामले को और गहरे अन्वेषण की दरकार है जो की जानी जरूरी है।
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