संजय रावत
ये जानकर आप हैरान हो सकते हैं कि बनभूलपुरा औऱ इंद्रानगर हल्द्वानी के ऐसे इलाके है जहां जमीनों के भाव सबसे ज्यादा हैं । इसीलिए यहां राजनैतिक पार्टीयों के तमाम वोट लाइजनर सरकारी और बेनाम संपत्तियों को खुर्दबुर्द कर बेचने के खेल में मशरूफ रहते हैं । इस पर आगे विस्तार से चर्चा करेंगे, पर आज बात कर रहे हैं इंद्रानगर में नगर निगम की ऐसी संपत्ति की जो वर्ष 2000 में वज़ूद में आई ।
स्थानीय लोगों की लिए सामुदायिक केंद्र का सपना दिखा कर इसे वज़ूद में लाया गया । यानी स्थानिय नॉनिहलों को कंप्यूटर, सिलाई और अन्य ज्ञानार्थ के लिए सपने भी दिखाए और छदम प्रयास भी हुए । पर तब से सामुदायिक भवन किसी काम ना आ सका सिवाय उस ठेकेदार के जिसने इसका निर्माण कार्य किया था । इन जनाब का नाम है वकील अहमद साहब, जो सस्ता गल्ले की दुकान भी चलाते है और जिनके खैर-ख्वाह हैं उस इलाके के पार्षद शकील सलमानी साहब । शकील साहब के खैर-ख्वाह हैं कॉग्रेस लीडरान ।
अभी मुद्दे की बात यह कि पिछले 21 वर्षों में यह इमारत जिसे सामुदायिक केंद्र के नाम से बनाया गया जनउपयोगी साबित नहीं हुई ।
इतने सालों बाहर या मीडिया को यह पता भी नहीं कि अब से खंडहर सी इमारत वजूद में आई कैसे । अब यहां से शुरू होते हैं हैरान करने वाले किस्से । इंद्रानगर के एक स्थानीय निवासी ने नगर निगम से एक बार रैन बसेरा और एक बार सामुदायिक केंद के नाम से क्रमशः 8 और 10 बिंदुओं पर सूचना मांगी । जिसके जवाब में निगम ने एक मात्र सूचना के अलावा सब में कह दिया कि सूचना धारित नहीं है, और जो सूचना दी गई उसमें कहा कि ये नजूल भूमि है ।
ये भूमि किसकी थी निगम ने कब्जे में लेकर कैसे, किस वजह से निर्माण कराया ये कहानी और रोचक है । स्थानीय निवासियों से जब बात की तो उनका कहना था कि कोई नारायण दत्त जोशी, निवासी भीमताल, यहां करीब 52 बर्ष पूर्व, वर्ष 1968 में आ बसे । जिन्होंने वहां 20 गुणा 40 के कई प्लाट बना वहां लोगों को बेचे ।
आंखरी प्लाट जो अब विवादित खंडहर है वो खुद उन पंडित जी ने अपने पास रखा जिसमें उन्होंने न्याय के देवता ‘गोलज्यू’ का मंदिर बनवाया । उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे-बहू और नातियाँ का आना जाना रहा । पर 20 गुणा 40 वर्गफीट की भूमि पर 10 गुणा 10 की जगह छोड़ वो बांकी संपत्ति बेच गए । किसको बेची इसका सही प्रमाण ना वहां के स्थानीय निवासियों के पास है ना नगर निगम के पास ।
खैर फिर शकील सलमानी ने सत्ता प्रभाव से वहाँ सामुदायिक केंद का प्रस्ताव अकेले कोंग्रेस शासन को सौंपा जिसमें किसी स्थानीय नागरिक से सहमति नहीं ली गई, पर इमारत बन गई । इमारत बनाने वाले ठेकेदार वकील अहमद ने वो खास जगह भी तोड़ वहाँ भवन निर्माण कर दिया जो आज एक खंडहर सा वकील अहमद के ही कब्जे में है । जहां नगर निगम के नाम से बिजली कनेक्शन तो है पर ये बात निगम को भी नहीं पता ।
यहां न्याय को तरस रहे न्याय के देवता
उक्त भूमि पर 10 गुणा 10 वर्गफीट पर पंडित नारायण दत्त जोशी ने न्याय के देवता गोलज्यू का मंदिर स्थापित किया था जिसे वकील अहमद ने शकील सलमानी और नगर निगम की सांठगांठ से तोड़ दिया । इस इलाके में करीब 50 से 60 परिवार गोलज्यू को मानने वाले रहते हैं । इन 21 सालों में जब न्याय के देवता थान को ही ध्वस्त कर दिया गया तो बांकी आबादी की बिसात ही क्या । फिल वख्त गोलज्यू और स्थानीय निवासी भूमि की पुनर्स्थापन को लेकर खुद न्याय की आस में हैं कि कोई मामले की सुनवाई करे और न्याय हो ।
स्थानीय निवासी 72 वर्षीय माया देवी का कहना है कि शकील सारी खुराफात की जड़ है, जिसने बिना सार्वजनिक सहमति के जो किसी काम नहीं आया ।
नहीं देंगे कोंग्रेस प्रतिनिधि को वोट
इस मामले पर स्थानीय जनता जिसमें हिन्दू और मुस्लिम शामिल हैं का कहना है कि इस विधानसभा चुनाव में कोंग्रेस प्रत्याशी को वोट नहीं देंगे । चूंकि इस इमारत का शिलान्यास डॉ इंदिरा जी ने किया था पर उसके बाद शिकायतों के बावजूद कोई निष्कर्ष तक नहीं पहुच पाए । कभी इस भूमि को निगम अपनी बताता है तो कभी रेलवे ।