उत्तराखंड के विश्वप्रसिद्ध ‘जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क’ को ‘सरकारी घड़ियालों’ ने अपने भ्रष्ट दांतों से ऐसा छलनी किया है कि इसकी चीख मीडिया घरानों से होती हुई अब दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच चुकी है ।
व्यूरो रिपोर्ट देहरादून – कॉर्बेट के जंगलों में कई तरह के घलियाल विराजमान हैं जिनके जबड़ों की अपने अपने इलाकों की अलग अलग दास्तानें हैं । ये सारी दास्तानें एक दूसरे से आपस में ऐसे गुथ गई हैं कि पाठकगण बड़े भ्रम की स्थिति में हैं । इसलिए हम अलग अलग मामलों को क्रमवार प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं । जिनमें सबसे पहले हम कॉर्बेट पार्क का छोटा सा इतिहास और भूगोल समझते चलें ।
यह भारत का पहला नेशनल पार्क है जो 1288 (बारह सौ अठ्ठासी वर्ग किलोमीटर ) में उत्तराखंड के दो जिलों पौढ़ी- गढ़वाल और नैनीताल में फैला हुआ है । इसके बीच रामगंगा नामक नदी बहती हैं जिसे हम कॉर्बेट पार्क के विभाजक के रूप में देख सकते हैं । नदी के दाहिनी तरफ ( नदी के दाहिने और बाएं की दिशा इस बात से तय होती है जब हम उस तरफ देख रहे होते हैं जहां से नदी बहती हुई आरही है ) ढिकाला, सतपुली, बिजरानी, कालागढ़ और झिरना नामक कुल 6 जोन हैं तथा बायीं तरफ मंदाल, मैदावन, प्लेन, अदनाला, पांखरो और सोना नदी नामक जोन हैं ।
वर्ष 1972 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ नामक मुहिम के तहत पहली बार बाघों के संरक्षण की बात चली और यह देश का पहला नेशनल पार्क बना । जिसका उद्घाटन ढिकाला में इंदिरा गांधी ने किया । कहा जाता है कि वर्ष 2005 में राजस्थान के सरिस्का में जब बाघ नामक पूरी प्रजाति ही खत्म हो गई थी तब देश में NTCA ( National Tiger Conservation Authority ) यानी ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण’ वर्ष 2006 को अस्तित्व में आया । जिसमें एकदम साफ कर दिया गया कि देश में हर टाइगर रिजर्व के दो महत्वपूर्ण भाग होंगे । पहला ‘कोर जोन’ और दूसरा ‘बफर जोन’ । उत्तराखंड में यह प्रक्रिया वर्ष 2009 से 2011 तक पूरी कर ली गई । और बाकायदा 26 फरवरी वर्ष 2010 को एक एक्ट पारित हुआ जिसे ‘कोर क्रिटिकल हैबिटेट’ नाम से जाना गया । इस प्रभावशाली एक्ट को सरल भाषा में समझें तो ‘कोर जॉन’ का मतलब मानव शून्य उपास्थि वाला क्षेत्र, और ‘बफर जोन’ मतलब वन्यजीवों के साथ मानव की अल्पकालिक उपस्थिति ।
यानी ‘बफर जोन’ में निश्चित समयानुसार पर्यटक जा सकते हैं पर ‘कोर जोन’ में वन्यजीवों के अलावा कोई भी किसी प्रकार की गतिविधि नहीं कर सकता । यूँ मानिए कि एक ‘बाघ वास स्थल’ है जिसे संवैधानिक रूप से अति संवेदनशील इलाका बनाया गया है वो ‘कोर जोन’ है । और इसके बाहर चारों तरफ ‘बफर जोन’ है ।
अब कढ़े नियम मानकों के हिसाब से कोर जोन में जब मानव आवाजाही ही प्रतिबंधित है तो किसी तरह का निर्माण कार्य वहाँ हो ही कैसे सकता है । पर दुर्भाग्यवश कॉर्बेट टाइगर रिजर्व रामनगर के अंतर्गत ढिकाला रेंज के इलाके में कुछ सरकारी घड़ियाल वन मंत्री के इशारे पर निर्माण कार्य का मन बना चुके थे । जिसके लिए उन्होंने वन्य जीव प्रतिपालक आवास, जो दशकों पहले झोपड़ीनुमा बने थे, उनके जीणोद्धार के लिए अपर प्रमुख वन संरक्षक, नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन उत्तराखंड से 25 लाख की धनराशी मांगी । जो उन्हें नहीं दी गई तो इसमें दूसरे सरकारी घड़ियाल ने CAMPA फंड से दे दी । जबकि CAMPA ( Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority, Uttarakhand ) की राशी प्रतिपूरक वन रोपण, जलग्रहण क्षेत्र उपचार, वन्यजीव प्रबंधन, वन पंचायतों का सदृढ़ीकरण, वन आग प्रबंधन तथा वानिकी अनुसंधान के लिए ही खर्च की जा सकती है ।
खैर ये खेल चला तो ढिकाला रेंज में करीब एक करोड़ की लागत से कंक्रीट का शानदार बंगला तैयार हो गया । ये जब उच्च अधिकारियों को पता चला तब तक देर हो चुकी थी । बहरहाल कहानी आगे बढ़ी और कारण बताओ, सफाई दो की चिट्ठियां कॉर्बेट के अंदर बाहर यात्रा करने लगी और प्रमुख वन संरक्षक ( Hoff ) राजीव भरतरी ने अपर प्रमुख वन संरक्षक विजय कुमार और वित्त नियंत्रक उत्तराखंड वन विभाग को जांच सौंपी दी ।
15 बिंदुओं पर जांच होने के क्रम में दोनों घड़ियालों निदेशक कॉर्बेट टाइगर रिजर्ब, राहुल और कैंपा के सी ई ओ जब्बर सिंह सुहाग को गर्दन फंसती नजर आई तो वे वन मंत्री के पास पहुचे । और वनमंत्री हरक सिंह रावत ने बैक डेट पर एक पत्र लिख मारा जिसमें कहा मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को कहा कि – कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में देश विदेश से गणमान्य, माननीय प्रधानमंत्री, माननीय राज्यपाल आदि भ्रमण/रात्रि निवास के लिए आते हैं इसलिए उपरोक्त हट के जीर्णोद्धार के लिए फंड दिया जाए । वनमंत्री के लिए यह हैरानी की बात नहीं पर जांच अधिकारियों के लिए जरूर होगी कि जिस तारीख को पत्र जारी किया उस तारीख पर संबंधित पद पर जांच के निर्देश देने वाले अधिकारी राजीव भरतरी मौजूद थे ।
सूत्रों की मानें तो जांच पूरी कर ली गई है जिसके नतीजे बहुत चोंकाने वाले हैं । सरकारी घड़ियालों की घोर अनियमितताओं, ‘कोर क्रिटिकल हेबिटेट’ को सिरे से खारिज करने का जब सार्वजनिक होगा तो वनमंत्री भी मुंह छुपाने लायक नहीं रहेंगे ।
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