वन विकास निगम ने भाजपा समर्थक लिए तोड़े कई महत्वपूर्ण नियम मानक – भाग 2
संजय रावत
उत्तराखंड में रामनगर के आम डंडा, बिजरानी में टैंट कालोनी को बिना टेंडर कथित नेता को परोस देने के मामले में पड़ताल के बाद रोज नए खुलासे होने लगे हैं। पिछली रिपोर्ट में हमने आपको बताया था कि सत्ता के गलियारों में विचरण करने वाले रामनगर निवासी हरीश सती को ईको टूरिज्म के नाम पर नियम मानकों की अवहेलना कर वन विभाग का एक बड़ा भूभाग वन विकास निगम ने पी. पी. पी. मोड पर दिया, जिसे हरीश सती लीज शर्तों को दरकिनार करते हुए संचालित कर रहे थे। अब इसकी अगली कड़ी में जानते हैं कि किस तरह अन्य आवेदन कर्ताओं को गुमराह कर उक्त भूभाग हरीश सती को आवंटित कर दिया गया।
सत्ता की आड़ लेकर हरीश सती ने सुनियोजित तरीके से पहले सगीर खान द्वारा एक भूभाग को समर्पण करने का इंतजार किया जिसमें पहले से ही करीब डेढ़ करोड़ का निवेश किसी अन्य द्वारा किया हुआ था। अनुबंध के मुताबिक होना क्या चाहिए था यह अगली कड़ी का हिस्सा रहेगा, पर यहां अभी बात करते है वन विकास निगम के अधिकारियों के मिली भगत की। सगीर खान द्वार समर्पण करने के बाद खुली निविदा आमंत्रित की जानी चाहिए थी पर की नहीं गई। किया यह गया कि इच्छुक आवेदनकर्ताओं से प्रार्थना पत्र मांगे गए, और कहा गया कि सभी की योग्यता परखने को एक कमेटी बनाई जाएगी, जो फैसला करेगी कि कौन काबिल आवेदक है, उसी के हक में फैसला होगा।
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कौन अधिकारी शामिल थे आवंटन प्रक्रिया में
यहां योजना के तहत कुछ और ही होना तय था। वन विकास निगम के पांच अधिकारियों की कमेटी बनी जिसमें वो सारे महानुभाव शामिल थे जिन्होंने हरीश सती के पक्ष में फैसला देना था। इसके सदस्य गण थे माननीय विद्यासागर जी, जो ईको टूरिज्म रामनगर में अनुभाग अधिकारी हैं, दूसरे महानुभाव थे माननीय जी. सी. आर्या जी, जो विक्रय प्रभाग रामनगर में लेखा प्रबंधक रहे, तीसरे महानुभाव थे राम कुमार जी जो खनन रामनगर में प्रभागीय प्रबंधक हैं, चौथे महानुभाव थे राकेश कुमार जी,जो पूर्वी रामनगर में प्रभागीय लैंगिक प्रबंधक रहे, अब बढ़ते हैं उस नाम की तरफ जिन्हें इस मामले को निपटाने की सबसे ज्यादा जल्दबाजी थी, ये महानुभाव इस कमेटी के अध्यक्ष थे जो अभी प्रभागीय विक्रय प्रबंधक है जिनका नाम है जी.आर. आर्या. जी । इनके बारे में पता चला है कि ये जिस पद पर विराजमान हैं उस पद की अहर्ता ही नहीं रखते हैं।
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कौन थे अन्य आवेदनकर्ता
चलिए अब मुखातिब होते हैं उन आवेदनकर्ताओं की तरफ जिन्हें खबर भी नहीं हुई कि अचानक हुआ क्या। पहले उन आवेदनकर्ताओं के नाम जान लें जिन्हें वन विकास निगम ने अपने दस्तावेजों में शामिल किया है। इसमें क्रमवार पहला नाम है – दीवान सिंह मटकोटी, पुत्र स्व. प्रेम सिंह मटकोटी, हल्द्वानी का, दूसरा नाम है चेतन बलुटिया, पुत्र स्व. जगदीश चंद्र बलुटिया हल्द्वानी का, तीसरा नाम है बलवंत सिंह नेगी,पुत्र चंदन सिंह नेगी रामनगर का,चौथा नाम तो योजनाकर्ता श्री हरीश सती जी की फर्म ‘रिधिमा बैकर्स एंड हॉस्पिटालिटी’ का, और पांचवां नाम है सत्यपाल सिंह,पुत्र दलीप सिंह,चिलकिया रामनगर का।
आवंटन पर क्या बोले आवेदनकर्ता
हरीश सती के अलावा उक्त चारों आवेदन कर्ताओं का कहना है कि निगम द्वारा हमसे आवेदन पत्र मांगे तो गए पर आवंटन वाले दिन हमें कभी बुलाया ही नहीं गया। हमें पहले ही शक था कि इस मामले में हरीश सती कुछ गडबड कर रहा है, इसलिए हमने विभाग में लिखित शिकायतें भी की पर किसी ने एक न सुनी और हरीश सती को उक्त भूभाग आवंटित कर दिया।
माननीय अधिकारियों के बयान
कमेटी में शामिल सबसे पहले हमने बात की हमने बात की माननीय विद्यासागर जी से, उनका कहना था कि इस कमेटी में मेरा नाम तो था पर उस दिन उस वक्त मैं वहां मौजूद नहीं था। क्योंकि मेरे पास डिपो का भी चार्ज है तो मैं उस दिन किसी नीलामी में गया था। दूसरे अधिकारी के तौर पर जी. सी. आर्या जी (अब सेवानिवृत्त ) से हमारी बात हुई तो उनका कहना था कि हरीश सती के अलावा किसी के भी आवेदन पत्र में जी.एस.टी. नंबर नहीं था इसलिए सबके आवेदन रद्द हो गए, इस बात पर उन्होंने बलपूर्वक यह भी जोड़ा कि जो मैं कह रहा हूं वो कागजों के आधार पर कह रहा हूं। तीसरे अधिकारी रामकुमार जी थे, खबर लिखे जाने तक उनका फोन बंद था। यही हाल चौथे अधिकारी राकेश कुमार जी का था। अंत में इस कमेटी के अध्यक्ष जे. आर. आर्या जी पहले ही कह चुके थे कि इस मामले पर बयान देने के लिए में अधिकृत नहीं हूं। इन अधिकारियों की बातों से समझा जा सकता है कि आवंटन की रूपरेखा क्या रही होगी।
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एक्स्ट्रा शॉर्ट्स
बिजरानी कैंप टेंट कॉलोनी की इस मामले में असलियत जहां पर्त दर पर्त खुलती जा रही है वहीं पाठकों द्वारा वन विकास निगम की कई कारगुजारियों का कच्चा चिट्ठा बयां किया जा रहा है।