उत्तराखंड के सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट कर दिया कि किसी भी राजकीय न्युक्ति पर किसी भी आवेदक द्वारा अभ्यर्थी की अहर्ता और प्रमाणपत्रों की सूचना मांगे जाने पर इंकार करना, सूचना अधिकार अधिनियम की मूल भावना पारदर्शिता की खिलाफत करना है । मामला था जनपद नैनीताल के रामनगर का जहां जगतपाल द्वारा दून विश्वविद्यालय में चयनित भौतिक विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर पद हेतु साक्षात्कार में उपस्थित रहे अभ्यर्थियों की सूची, साक्षात्कार के प्राप्तांको सहित चयनित अभ्यर्थियों के न्युक्ति संबंधी अहर्ता और शैक्षिक प्रमाणपत्रों की जानकारी मांगने का ।
घटनाक्रम कुछ यूं था कि जब जगतपाल द्वारा दून विश्वविद्यालय से सूचना का अधिकार के तहत उक्त बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई तो संबंधित लोक सूचना अधिकारी ने सूचना देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि यह निजता का मामला है इसलिए सूचना नहीं दी जा सकती । फिर आवेदनकर्ता जगतपाल द्वारा राज्य सूचना आयोग में अपील कर चयनित अभर्थियों से सम्बन्धित सूचना उपलब्ध कराने की मांग की गई ।
मामला जब राज्य सूचना आयोग पहुंचा तो सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने स्पष्ट कर दिया कि मामला निजता का है ही नहीं, बल्कि अभिलेख के रूप में नियुक्त करने वाले संस्थान की संपत्ति का है । सुनवाई करते हुए चर्चा के उपरांत कहा कि इस तरह की सूचनाओं को सार्वजनिक न किया जाना अथवा सूचना अधिकार के अंतर्गत देने से मना किया जाना सूचना अधिकार अधिनियम की मूल भावना- ‘पारदर्शिता’ के विपरीत है। यह स्पष्ट किया जाता है कि शैक्षिक योग्यता संबंधी प्रमाण पत्र तभी तक निजी सूचना है जब तक कि उनके आधार पर कोई सार्वजनिक लाभ न लिया गया हो। लोक सूचना अधिकारी को निर्देशित किया जाता है कि दिये गये आश्वासन के अनुरूप असिस्टेन्ट प्रोफेसर की अर्हता से संबंधित प्रमाण पत्रों की प्रति एक सप्ताह के अंदर अपीलार्थी को उपलब्ध कराते हुए कृत अनुपालन से आयोग को भी अवगत कराना सुनिश्चित करें।
इससे पहले होता यह था कि इस तरह की जानकारियां मांगने पर सूचना कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और जनसमन्य को यह कह कर भ्रमित किया जाता था मामला अमूक की निजता का है। अमूक के पूछ कर ही जानकारी दी जा सकती है । इस फैसले के बाद अब चीजें साफ हो गई हैं जो आगे नजीर का काम करेंगी ।क्योंकि किसी भी राजकीय क्षेत्र में कार्मिकों की न्युक्तियों में पारदर्शिता व्यापक लोकहित का विषय है।