पूंजी की आंच में पकी भ्रष्टाचार की खिचड़ी

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संजय रावत

रोटी कपड़े के बाद कुछ गुंजाइश हो तो आदमी सोचता है कि मकान सी शक्ल का घर बना लिया जाए । इस ख्याल के साथ जब वह धरातल पर उतरता है तो, इसी जमीन पर उसकी मुलाकात उन भेड़ियों से होती है, जिनके नामों के साथ उपनाम भी होते हैं, सरकारी भाषा में जिन्हें पदनाम कहा जाता है । पर यह पूंजीपतियों के साथ हो, ऐसा देखने को कम ही मिला है, चूंकि पूंजी की आंच में सख्त अधिकारी भी मक्खन की तरह पिघलता है।जिस मामले से आज आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, इसकी कहानी में दस से ज्यादा पदनामों से भ्रटाचार की दुर्गंध आपको असहज कर सकती है ।

कहानी के मुख्य किरदार का नाम है अशोक पाल।व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले अशोक साहब ने हल्द्वानी के गोविंदपुरा, बृज विहार ( ठंडी सड़क ) भोटिया पड़ाव में 1368.77 वर्ग मीटर नजूल भूमि, वर्ष 2006 में प्रभात कुमार साह से पंजीकृत बैनामे के माध्यम से खरीदी ।
27 अप्रैल 2006 के इसी दिन से इसमें कई पदनामों का शामिल होना तय हो गया।अशोक साहब ने इसे फ्रीहोल्ड कराने का मन बनाया और वर्ष 2022 में करा भी लिया । सरकारी गजट, उत्तराखंड ( असाधारण ) जिसके स्पष्ट निर्देश बताते हैं कि राज्य में नजूल भूमि के प्रबंधन और निस्तारण हेतु किन नियम मानकों के अनुसार चला जाएगा। पर सबसे पहले इस असाधारण गजट को ही सिरे से नकार दिया गया। अब कोई सोचे कि नजूल भूमि खरीदना, उसे फ्रीहोल्ड कराकर उसमें कोई व्यवसाय करना कोई पाप या अपराध तो नहीं हुआ? पर इस मामले में पाप भी हुआ और अपराध भी! जिसके चलते राज्य को आर्थिक और सामाजिक हानि भी हुई है। कैसे हुआ यह सब, चलिए जानते हैं ।

गौलापार निवासी सूचना अधिकार कार्यकर्ता रविशंकर जोशी द्वारा प्रेषित सूचनाओं से साफ हुआ है कि,नगर निगम और राजस्व विभाग पूंजीपतियों के इशारों में कैसे कैसे-खेल खेलते हैं

एक नजर पहले मूल मानकों पर


नजूल नीति कहती है कि,किसी भी कब्जे की जमीन को कब्जेदार के हक में फ्रीहोल्ड करने से पूर्व यह देखा जाएगा कि, वर्तमान और भविष्य में उसका उपयोग सार्वजनिक हित में हो सकता है तो राज्य सरकार उसे कब्जे में लेकर सार्वजनिक उपयोग में लाएगी। मसलन पार्क, चौराहे का चौड़ीकरण, सार्वजनिक ट्रांसफार्मर, पार्किंग, पुलिस सुविधा केंद्र आदि,आदि । सबसे पहला उल्लंघन तो इसी नियम का किया गया कि,वहीं भोटिया पड़ाव चौकी जो अवैध भूमि पर बनी है,उसे यहां शिफ्ट किया जा सकता था, वही ठंडी सड़क पर वाहन सड़कों पर खड़े रहते है, तो यहां पार्किंग भी बनाई जा सकती थी । पर ऐसा नहीं हुआ, इससे इतर कुछ और ही हुआ जो निम्न बिंदुओं के अंतर्गत समझ सकते हैं :-

300 वर्ग भूमि से ज्यादा फ्री होल्ड नहीं की जा सकती

सारा खेल ही दरसल इस नियम की खिलाफत का हुआ है । अशोक पाल ने जो भूमि खरीदी थी वो है 1378.77 वर्ग मीटर, यह नियम दरकिनार नहीं किया जाता तो,1378.44 – 300 यानी 1078.77 वर्ग मीटर भूमि असाधारण गजट के मुताबिक सरकार को वापस करनी थी।जो अशोक साहब को मंजूर नहीं था, इसलिए चीजों को लंबा खींचा गया । पहले तो वर्ष 2006 में खरीदी भूमि को फ्रीहोल्ड कराने हेतु हालात देखते हुए वर्ष 2013 में आवेदन किया गया।फ्रीहोल्ड हेतु भी अशोक साहब के लिए उत्तराखंड नजूल नीति 2009 के प्रावधान लागू किए गए उपजिलाधिकारी द्वारा एक पैनल ने वर्तमान शासनादेश 11-12-2021 के अनुसार दरें निर्धारित करने की बात कही थी तो इस नीति के तहत साफ है कि 300 वर्ग मीटर से अधिक भूमि फ्रीहोल्ड नहीं होगी ।

अशोक पाल का पहला स्टंट


नगर निगम द्वारा फ्रीहोल्ड को स्व मूल्यांकन के लिए एक फार्मुला तय है जो कुछ इस तरह से है ( निर्धारित सर्किल रेट X भूखंड का कुल क्षेत्रफल X भू उपयोग हेतु निर्धारित दर / 200 % ) इस फार्मूले के अनुसार स्व मूल्यांकन की धनराशी हुई कुल ₹ 8548374 ( पिच्यासी लाख अड़तालिस हजार तीन सौ चोहत्तर ₹ ) हालांकि यह गणना दिनांक 9 -11-2000 के सर्किल रेट के हिसाब से थी पर इसका भी 25 प्रतिशत जमा किया जाना था, जो ₹ 2137092 ( इक्कीस लाख सैंतीस हजार तिरानबे ₹ ) होता है । पर अशोक सामान ने कुल ₹ 500000 ( पांच लाख ₹ ) ही जमा किए और निगम द्वारा स्वीकार भी कर लिए गए। नियमानुसार यह फ्रीहोल्ड का यह आवेदन पूर्ण रूप से अवैध था । अवैध होने के चलते, नियमानुसार अशोक पाल को यह आवेदन दोबारा नजूल नीति 2021 में उल्लखित प्रावधानों के अनुरूप करना चाहिए था।

अब अफसरों के स्टंट्स पर एक नजर


जमीनों पर कब्जे और मानचित्र से इतर अवैध निर्माण पर नजर रखने वाले सारे अधिकारी इस मामले पर अशोक पाल के पक्ष में स्टंट मारते नजर आते है । ये अशोक पाल की पूंजी की आंच का कमाल था या फिर कुछ और, पर कुछ उदाहरणों से ये साफ हो जाता है कि अधिकारी गण कैसे नियमविरुद्ध ऐसे काम कर जाते हैं जिनसे बड़ी राजस्व हानि होती है । पहले तो अधिकारी गण येन केन प्रकारेण 17- 5- 2022 को उक्त भूमि का अशोक पाल के पक्ष में बैनामा कर देते हैं, जिसका विचार मूल्य ₹ 7693537 ( छिहत्तर लाख त्रेपन हजार पांच सॉ सैंतीस ₹ ) घोषित किया जाता है पर इसमें कोई निर्माण नहीं दर्शाया जाता है ।

लेकिन 17-5-2022 को अशोक के नाम फ्रीहोल्ड होने के मात्र ग्यारह दिन बाद अशोक पाल द्वारा उक्त भूखंड अपने पिता रमेश पाल को दान कर दिया जाता है । यूं तो यह काम नियमानुसार चालीस दिनों से पहले नहीं होना चाहिए था पर इन ग्यारह दिनों के भीतर का कमाल देखिए कि यहां अब चार मंजिला व्यवसायिक इमारत उग आती है, जिसका मूल्य अब ₹ 105171000 ( दस करोड़ इक्यावन लाख इकहत्तर हजार ₹ ) घोषित किया जाता है ।

बात यहीं कहां रुकती है, 28-5-2022 के उक्त आंकलन के बाद अशोक पाल के पिता मात्र तीन दिन बाद 1-6-2022 को अपने भाई महेश पाल को दान कर देते हैं । बात फिर आगे बढ़ती है महेश पाल विकास प्राधिकरण हल्द्वानी में 15-7-2022 को आराम से कंपाउंडिंग और मानचित्र स्वीकृत कराने पहुंचते हैं। जिसमें उक्त भूखंड पर पांच मंजिला व्यवसायिक इमारत निर्मित होना दर्शाया गया था। दोनों दान लेते रमेश पाल और महेश पाल अब इस दुनियां में नही रहे।पर विकास प्राधिकरण, नगर निगम, प्रशासनिक अधिकारियों और राजस्व विभाग की कार्यशैली सोचने पर मजबूर करती है कि ये किसके पक्षकार है और असाधारण सरकारी गजट का यही हश्र होना हो शासन के उपर गंभीर सवाल खड़े होते हैं ।

बाकी तमाम पदनामो का जिक्र अभी सक्ष्यों के अभाव में नहीं किया जा सका है


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