
संजय रावत
उजालों की चमक के भीतर के अंधरे देखने हों तो हल्द्वानी बेस चिकित्सालय का एक दौरा तो बनता ही है। यूँ तो यहाँ अंधेरों की लम्बी फेहरिस्त नजर आती है पर आज कुछ अंधेरों पर गौर करें तो नजर आते हैं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को आवंटित वे दस आवास जो इतने जर्ज़र हो चुके हैं कि कोई कर्मचारी उसमें रहने की हिम्मत ही नहीं उठा पाता। ऐसे ही एक जर्ज़र आवास में मात्र एक सफाई नायिका जीवन जी रही है।
यह टाइप 1 श्रेणी के एक कमरे वाले आवास कभी अग्र सेवकों यानी वार्ड बॉय के लिए बनाए गए थे जिनकी तनख्वाह कट- कटा कर मात्र छः हजार रूपए होती है। इनकी दयनीय दशा देख प्रमुख अधीक्षक व ट्रेजरी अधिकारी ने मिल कर एक कमेटी गठित की, जिसमें फैसला लिया गया कि आप लोग अपने पैसों से इसकी मरम्मत कराएंगे, जिसके लिए विभाग उनकी कुछ मदद करेगा। जिसके चलते किसी ने पचास हजार लगा कर जीर्णोद्धार कराया तो किसी ने अन्य रकम से।
इस पर भी हैरान करने वाली बात यह कि इनका लेखा जोखा रखने वाले मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के कार्यालय को यह जानकारी भी ठीक से नहीं कि आखिर ये आवास कितने हैं और कब किसे यह आवंटित किए गए थे। विभागीय संवेदन हीनता का आलम यह कि कोई यह भी नहीं बता पाया कि ये भवन आवंटित किए जाने के लिए पात्र कर्मचारी कौन हैं और सक्षम अधिकारी कौन हैं। जबकि इनमें से करीब पंद्रह कर्मचारी यानी बार्ड बॉय सेवानिवृत भी हो चुके हैं।
ऐसा नहीं कि इनकी मरम्मत या पुर्ननिर्माण के लिए शासन को प्रस्ताव नहीं भेज गए हों, पर शासन की मंशा तो चिकित्सालय के भीतर के अंधेरों को उजास से भर देने की नहीं बल्कि बाहरी चमक दमक को दिखा वाहवाही लूटने की रही है। जिसका उदाहरण है चिकित्सालय के वे तीन द्वार जो लाखों रुपयों की कीमत से बेहतरीन मारवल से निर्मित ही नहीं किए गए हैं बल्कि समय समय समय पर उनका जीर्णोद्धार किया जाता रहता है।

यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि चिकित्सालय के जो तीन मुख्य द्वार लाखों रूपए की लागत से निर्मित किए गए हैं वह बड़ी रकम खनन न्यास समिति के फंड से बनाई गई है। खनन न्यास समिति दरअसल मजदूरों के हितों के लिए अर्जित एक बड़ा कोष होता है जिसे मजदूरों, कर्मचारियों की तमाम समस्याओं के लिए बनाया गया है, जसकी अध्यक्षता जिलाधिकारी के हाथों होती है।
सवाल यह है कि बाहरी चमक दमक से बेहतर होता कि उक्त रकम से चिकित्सालय के कर्मचारियों के लिए ही भवन निर्माण कराए जाते। हालांकि अभी छः नए टाइप 2 श्रेणी के भवन बनाए जाने का दावा किया जा रहा है पर विचारणीय बात यह है कि शासन और प्रशासनिक अधिकारियों के विवेक किसे तवज्जो देता है। बाहरी चमक-दमक को या निम्न कर्मचारियों की जरूरतों को।