
संजय रावत
सत्ता जनता का जितना धन बर्बाद करे अपनी उपलंधियों के विज्ञापन पर या न्याय करने के छद्म पर । पर कार्यवाही उसका सबूत दे ही देती है । एक तरफ है नदियों के किनारे बसे मजदूरों को उजाड़ने का मामला और दूसरी तरफ है उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद नदी किनारे पूंजीपतियो के रिसोर्ट को बचाने का मामला । दोनों मामलों पर बात करते है जिससे साफ हो जाए कि सत्तासीनो की मंशा है क्या ।
सबसे पहले उच्च न्यायालय के उस निर्देश की बात करते हैं जिसमें संजय व्यास बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य 26 अगस्त 2013 , जिसमें न्यायाधीश सर्वेश कुमार दुबे और न्यायाधीश बारिन घोष द्वारा साफ साफ कहा गया है कि – “उत्तराखंड राज्य को अपने मुख्य सचिव के माध्यम से यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि अब 26 अगस्त 2013 से राज्य की किसी भी बहती नदी के तट से 200 मीटर के भीतर स्थाई प्रकृति के किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं है”

इससे पहले यह भी कहा गया कि – हाल की बाढ़ की पृष्ठभूमि में यह रिट याचिका एक गंभीर सवाल खड़ा करती है, जिसे राज्य के लोगों, इसकी सरकार, पर्यावरणविदों और मानव कल्याण से जुड़े हर व्यक्ति और विशेष रूप से उन लोगों द्वारा संबोधित किया जाना आवश्यक है।
उत्तराखंड की पहाड़ियों में निवास कर रहे हैं।
1995 में किसी समय, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय पारित किया और ऐसा करते हुए आदेश दिया कि किसी भी बहती नदी के तट से 100 मीटर के भीतर कोई निर्माण नहीं किया जाएगा।
वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी कर निर्देश दिया था कि गंगा नदी के तट से 200 मीटर के भीतर कोई निर्माण नहीं किया जायेगा।
लोगों ने सोचा कि गंगा नदी, जैसा कि उक्त सरकारी अधिसूचना में उल्लिखित है, वहीं से शुरू होती है जहां नदी का प्रवाह अपना नाम गंगा मानता है।
इसके परिणामस्वरूप, गंगा नदी की कई सहायक नदियों के तटों पर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य शुरू हो गये।
उनमें से कई लगातार बाढ़ में चले गए हैं, जो साल-दर-साल आ रही हैं।
ऊपर उल्लिखित सरकारी आदेश में प्रतिबंधों को लोगों के एक वर्ग के लिए कम किया गया, लेकिन निर्माण के एक वर्ग के लिए नहीं।
सवाल यह है कि क्या यह बिल्कुल स्वीकार्य है।
अब बात करते हैं उत्तराखंड के शासक पुष्कर धामी जी की ।
E TV Bharat की रिपोर्ट जो 2 जून 2023 को 11:1 Am पर पब्लिश हुई और 2 जून 2023 को 1:44 pm पर अपडेट हुई के अनुसार मुख्यमंत्री धामी जी ने राज्य की 23 नदियों में ड्रोन से सर्वे के बाद मजदूरों वाले अतिक्रमण के स्थान चिन्हित किए । नदी किनारे मजदूरी करने वाले 4 लाख मजदूरों में से लगभग 20 प्रतिशत मजदूरों यानी (80000 ) अस्सी हजार लोगों को महज 50 दिनों बेघर कर 2000 एकड़ से ज्यादा इलाका खाली कर बेघर कर दिया ।
यहां उल्लेखनीय है कि रामनगर में रिसोर्ट की संख्या करीब पांच हजार के आस पास है ।
आज भी ऐसा ही कुछ हुआ कि क्यारी में बने अवैध रिसोर्ट में सिर्फ खानापूर्ति कर सिर्फ अमूक इलाके की दीवारें ध्वस्त की गई है । जबकी उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार रिसोर्ट को ध्वस्त किया जाना चाहिए था …