विधानसभा में मामला गूंजने के बाद भी गिरफ्तारी न होने का मतलब समझती है जनता

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गैरसैंण सत्र में आज हल्द्वानी के स्थानीय मामले को लेकर कुछ ऐसा हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ, जो हुआ वो अवयवस्थाओ के चलते नायब सा लग रहा है पर ऐसा हमेशा हो ये यह आवश्यक लग रहा और स्वागत योग्य है। जब पुलिसिंग नामजद रिपोर्ट के बाद आरोपी को अग्रिम जमानत की मोहलत दे तो नजरिए को समझा जा सकता है। अब जानिए मामला क्या था जो विधानसभा में गूंजा, मामला था एक किशोर को ट्रोमा में लाकर आत्महत्या करने पर मजबूर करने का।

बीते 9 अगस्त को कुछ अराजक कहें या प्रोफेशनल्स ने जिनका मामले से कोई लेना देना नहीं था ने दमुआढूंगा निवासी देव शाह को इस कदर शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचाई कि उसने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया। जिस उम्र में बच्चे भविष्य को लेकर पूरी ऊर्जा के साथ कई सपने गढ़ते हैं, वहां एक नौनिहाल आत्महत्या को मजबूर होता है।

कई अहम मुद्दों के साथ इस मुद्दे ने सदन में जगह पाई, यह राज्य की पुलिसिंग और मौजूदा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी पर उदासीनता,आरोपी का अग्रिम जमानत पर आवेदन और आवेदन खरीज होने के बाद गिरफ्तारी न हो पाना आम नागरिक के भरोसे पर कुठाराघात नहीं तो और क्या है।

व्यवस्था को इस नजरिए से देखने की महती जरूरत है कि मौजूदा विधायक सुमित हृयदेश को यह बात सदन में उठानी पढ़ी। अब देखना यह है कि जिसको अब दो हफ्तों तक अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती, पुलिस उसकी गिरफ्तारी में तमाम तकनीकी संसाधनों के बावजूद कितना समय लगाती है।


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