जमीनें खाली करो कि पूंजीपति आते हैं

Share the Post
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  

रामधारी सिंह दिनकर की कविता की एक पंगती ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ ने जनता के होंसलों को जितनी उड़ान दी, आज सत्ता में बैठे लोग ऐसे होंसले पूंजीपतियों की उड़ान को दे रहे हैं । जैसे जनता से कह रहे हों कि अपनी अपनी जमीनें खाली करो कि पूंजीपति आते हैं’ । सार्वजनिक उपक्रम पूंजीपतियों के हवाले करने के बाद अब सीधी नजर किसानों, मजदूरों की जमीनों पर है । उत्तराखंड में एक तुगलकी फरमान के चलते लोग अपनी अपनी जमीनों को बचाने के लिए आंदोलनरत हैं ।

बीस गाँव भूमि मामले को लेकर बाजपुर में भूमि बचाओ आन्दोलन, सत्याग्रह और अनिश्चितकालीन धरना एक अगस्त से तहसील परिसर बाजपुर में चल रहा है । मामला उस जमीन का है जिसे1970 में किसानों को वर्ग- 1 क के तहत भूमिधरी अधिकार में दिया गया । ये जमीन बीस गाँव के लोगों के पास है जिसका रकबा लगभग 5838 एकड़ है । साल 2020 में जिलाधिकारी ऊधम सिंह नगर द्वारा आदेश दिया गया कि बीस गाँव के लोगों के पास यह जमीन क्राउन एक्ट के तहत लीज पर है इस पर लोग गलत तरीके से काबिज हैं क्योंकि इसमें गेटा (GETA) के तहत कार्यवाही नहीं हुई है. इसके बाद इस जमीन की ख़रीद-फ़रोख्त पर यह कहकर रोक लगा दी गयी कि कि इस पर गेटा के तहत कारवाई की जाएगी । इस आशय को भूमिधरों की खतौनी पर भी चस्पा कर दिया गया ।

साल 2020 से ही बीस गाँव के भूमिधर इस जमीन पर मालिकाने की लड़ाई लड़ रहे हैं । यही नहीं इस जमीन का 1100 एकड़ हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा औद्योगिक क्षेत्र में दे दिया गया । इसके अलावा बाजपुर शहर का 25 प्रतिशत हिस्सा, जो कि नगर पालिका क्षेत्र में भी आता है, भी औद्योगिक क्षेत्र में दिया जा रहा है । इससे हजारों परिवारों पर संकट आने वाला है, ये कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है ।

इस जमीन के बारे में संक्षेप में जानते हैं— इस जमीन की लीज अंग्रेज हुकूमत के समय, सन 1920 में, किसानों को दी गयी थी । इसमें 4800 एकड़ जमीन लाला खुशीराम को लीज पर दी गयी थी । इसके अलावा 1072 एकड़ जमीन श्याम स्वरूप भटनागर को भी साल 1936 में लीज पर दी गयी । इन जमीनों को सबलीज पर देने और बेचने के अधिकार भी इन्हें दिए गए थे । दोनों लीज धारकों ने 1956 तक सारी जमीन किसानों को सबलीज पर दे दी । इसके बाद 1966 में यहाँ गेटा लगा, जिसके तहत सरकार ने सभी लीजधारकों को वर्ग-1-क में सीरदार की श्रेणी में दर्ज कर दिया । फिर 1970 में ZA जमींदारी एक्ट बना तो सभी किसानों से 20 गुना लगान जमा करवाकर उन्हें भूमिधरी अधिकार दे दिए गए, तभी से सारे किसान, मजदूर, व्यापारी इन जमीनों पर काबिज हैं । तब से अब तक ये जमीनें कई दफा खरीदी-बेचीं भी जा चुकी हैं ।

अब सन 2020 में अचानक जिलाधिकारी महोदय कह रहे हैं कि इस जमीन पर लोग नाजायज तरीके से कभी हैं और इन पर गेटा के तहत कार्रवाई की जाएगी । प्रशासन के इस रवैये से तंग आकर भारतीय किसान यूनियन और भूमिधरों ने आंदोलन शुरू कर इस उत्पीड़न का विरोध शुरू कर दिया है । तहसील परिसर बाजपुर में इसे लेकर अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है । इस आन्दोलन का नेतृत्त्व भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष कर्म सिंह पडडा, पूर्व प्रधान राजनीत सिंह सोनू, कुमाऊँ मंडल के अध्यक्ष विक्की रंधावा, सन्नी निज्जर, जगतार सिंह बाजवा, बल्ली सिंह चीमा, प्रताप सिंह संधू, अशोक गोयल, राजू गोयल, कुलवीर सिंह आदि मुख्य रूप से कर रहे हैं । भूमिधरों का कहना है कि जब तक शासन-प्रशासन उनके अधिकार बहाल नहीं करता तब तक यह अनिश्चितकालीन धरना, प्रदर्शन चलता रहेगा ।

कुछ प्रमुख यूनियन जो समर्थन में हैं
आन्दोलन को भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), तराई किसान संगठन, भारतीय किसान एकता (उगराहा), अखिल भारतीय किसान (सभा), अखिल भारतीय किसान (महासभा), भूमि बचाओ मुहिम (बाजपुर), किसान संघर्ष समिति (रामनगर), क्रांतिकारी किसान मंच (कालाढूंगी), अखिल भारतीय किसान सभा (उत्तराखण्ड) आदि संगठनों का समर्थन प्राप्त है ।


Share the Post
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *