
संजय रावत
हल्द्वानी । चुनावी प्रत्याशियों की घोषणा देर से होने के चलते उसके साइड इफ़ेक्ट अब सामने आने लगे है। कमोवेश हर पार्टी का हाल एक जैसा ही दिख रहा है। मेयर पद के प्रयाशियों और उनकी चुनावी बागडोर सम्हाले नेताओं के बीच कोई वैचारिक सदभाव देखने को नहीं मिल रहा। किसी साक्षात्कार में नेतागण कुछ बयान दे रहे है तो मेयर प्रत्याशी कुछ और ही बोलते नजर आ रहे हैं ।
बीते सोमवार को हल्द्वानी निकाय चुनाव में ऐसा ही मामला सामने आया। एक साक्षात्कार के दौरान जब वरिष्ठ भाजपा नेता अनिल डब्बू से मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र बनभूलपुरा में प्रचार और भाजपा की स्थिति पर पूछा गया तो उनका कहना था कि अब मुस्लिम मतदाता भाजपा मेयर प्रत्याशी को जिताने का मन बना चुके हैं। इस पर उनके द्वारा तर्क यह दिया गया कि एक तो मुस्लिम समाज यह जान गया है कि सारी सरकारी योजनाओं का लाभ उनके हिस्से भी आया ही है और दूसरा यह कि निगमों को आर्थिक रूप से समृद्ध तो मौजूदा सरकार ही करती है और अभी भाजपा की सरकार है तो वोट भी मुस्लिम समाज भाजपा को ही देगा।
पर हैरानी देखिए कि इसी दिन अपने एक सम्बोधन में भाजपा के मेयर प्रत्याशी गजराज बिष्ट बनभूलपुरा पर बोलते हुए कहते हैं कि हल्द्वानी की फिजा को ख़राब करने वाला आतंकी खेल जो विगत वर्ष बनभूलपुरा में खेला गया, और प्रशासन ने उस उपद्रव को कुचलते हुए हल्द्वानी में इस आग को फैलने से रोका, उन उपद्रवियों के बलबूते कांग्रेस चुनावी नय्या पर करना चाहती है।
जनता के बीच इन दोनों के परस्पर विपरीत बयानों पर खूब चर्चा हो रही कि भाजपा का समन्वयक मण्डल भी शायद इस चुनाव से कन्नी काटे बैठा है। यदि ऐसा है तो भीड़, शोरगुल, दावतें, पोस्टर प्रचार और सोशियल मीडिया पर फसक बाजी से क्या हासिल होना है। सुसंस्कृत, सुसंगठित कहे जाने वाले भाजपा का संगठन यदि धरातल पर ऐसा भयावह दिखता है तो हार जीत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं रहता है।