संजय रावत
रुद्रपुर। डॉल्फिन कंपनी की मनमानियों के खिलाफ आठ दिन से अनशन पर बैठे मजदूरों को अब स्वास्थ्य विभाग, श्रम विभाग और जिला प्रशासन जता चुका हैं कि श्रम मंत्री का नाता श्रमिकों से नहीं बल्कि कंपनी के मालिकान से होता है। यह कोई नया दस्तूर भी नहीं पर राम राज्य और अच्छे दिन के नाम पर यह दस्तूर राज्य की जनता को बहुत अखर रहा है। ऐसा नहीं कि राज्य सरकार का सतर्कता विभाग ईमानदारी से रिपोर्टिंग नहीं कर रहा होगा। बावजूद इसके भी श्रममंत्री आंखों पर मलमल की नर्म पट्टी और कानों में रेशम के फाये डाले सुकून से हैं इससे बढ़िया अच्छे दिन और क्या हो सकते हैं।
कल की घटना के मुताबिक गांधी पार्क में आमरण अनशन में बैठी महिलाओं को अनशन प्रारूप के अनुसार उपचार देने के बजाय स्वास्थ्य महकमा उन्हें डिहाइड्रेशन से बचने वाले कुछ पैकेट दूर से फैंक कर जाते हैं। फिर कुछ देर बाद पुलिस दल उन अधमरी महिलाओं को बलपूर्वक खींच कर ले जाने की कोशिश करती हैं। पुलिस अधिकारी और अन्य सरकारी मुलाजिम अनशनकारियों से अनशन तोड़ने की जिद करते हैं। जबकि वे जानते हैं कि अपर जिलाधिकारी, जिला श्रम आयुक्त की सहमति से हुए फैसले को मजदूरों ने तो मान लिया पर मात्र छः घंटे के बाद कंपनी मालिक प्रिंस धवन की सत्ता तक पहुंच के चलते श्रम आयुक्त बैक फुट पर आ जाते हैं और इसीलिए मजदूर अनशन को विवश होते हैं। ऐसे हालात में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ वाला नारा बिल्कुल छलावा नजर आता है।
बहरहाल! बावजूद इसके, पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत कल अनशन स्थल गांधी पार्क, रुद्रपुर में श्रमिक संयुक्त मोर्चा उद्यमसिंह नगर, संयुक्त किसान मोर्चा, आम आदमी पार्टी और डॉल्फिन मजदूर संगठन के बैनर तले मजदूर किसान पंचायत का आयोजन किया गया।
पंचायत में वक्ताओं ने कहा बड़े ही शर्म और दुःख का विषय है कि अपने ही राज्य में बुनियादी श्रम कानूनों, भारतीय संविधान, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय उत्तराखंड के आदेशों की मांग करना श्रममंत्री को अखर रहा है। कंपनी में कार्यरत चार महिला मजदूरों सहित छः मजदूर आठ दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं पर श्रम विभाग, जिला प्रशासन, स्थानीय विधायक व संसदीय सहित सब मौन साधे हुए हैं डबल इंजन सरकार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है कि कंपनी मालिक को खुला संरक्षण दे रहे हैं। बुनियादी श्रम कानूनों के उल्लंघन पर कंपनी मालिक पर अपराधिक मुकदमा दर्ज कर, अवैध कृत्यों पर रोक लगा कर पांच सौ मजदूरों की कार्य बहाली कर आमरण अनशन को सम्मानजनक तरीके से खत्म किया जा सकता है, लेकिन शासन सत्ता तो अनशन कारियों को मृत्युलोक पहुंचा कर दम लेना चाहती है।
पिंकी गंगवार की हालत हुई नाजुक
अनशनकारी पिंकी गंगवार की स्थिति नाजुक बनी हुई है, शरीर उनका साथ नहीं दे रहा है। बावजूद इसके उनका हौसला और इरादे बहुत मजबूत नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि वो अंतिम समय तक संघर्ष जारी रखेंगी। आगे फिर उनका कहना था कि अनशन में मेरी मृत्यु हो जाती है तो मेरा अंतिम संस्कार मुख्यमंत्री के खटीमा आवास पर किए जाने की जिम्मेदारी अपर जिलाधिकारी पंकज उपाध्याय की होगी