देश के तमाम विश्विद्यालयों की तरह उत्तराखंड में बहुत चर्चित विश्विद्यालय है जो ‘कुमाऊँ विश्वविद्यालय’ कहलाता है । यह विश्वविद्यालय नीतियों और फैसलों को लेकर हमेशा चर्चा का केंद बना रहा है । आज भी कुछ ऐसा ही हुआ कि फिर कार्यप्रणाली को लेकर सुर्खियों में है ।
हुआ यह कि कुमाऊं विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ‘सनातन धर्म राजकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय’ रुदपुर में बी ए प्रथम वर्ष के हिंदी साहित्य का दूसरा पेपर था प्रातः 8 से दस। पेपर बंटने के बाद विद्यार्थी कुछ समझ पाते उससे पहले एक असिस्टेंट प्रोफेसर विद्या ने पेपर पढ़ना शुरू किया तो वो ये देख हैरान हो गई कि प्रथम वर्ष के पेपर में सारे प्रश्न द्वितीय वर्ष के कोर्स वाले हैं ।
उन्होंने जाकर महाविद्यालय की प्राचार्या को बताया तो वो भी हतप्रभ रह गई और दिमागी अफरातफरी शुरू हो गई । पहले एच ओ डी को बताया गया तो वो भी पगला गए, फिर कुमाऊं विश्वविद्यालय से संपर्क कर बात की तो वहां भी हड़कंप मच गया । फिर आनन फानन में पेपर कैंसिल करने का निर्णय लिया गया । पेपर बंटने से इस फैसले तक करीब सवा घंटे का समय लग गया तब जाके पूरे कुमाऊं के महाविद्यालयों को पेपर रद्द करने की सूचना दी जा सकी ।
अब सवाल यह है कि पेपर बनने से लेकर पेपर विद्यार्थियों तक पहुंचने में कई महत्वपूर्ण चरण होते हैं जो महत्वपूर्ण व्यक्तियों की जिम्मेदारी के होते हैं और जिसकी मोनिटरिंग को भी महत्वपूर्ण व्यक्तिय नियुक्त किए जाते हैं। फिर ऐसा कैसे हो गया, ये बहुत महत्वपूर्ण सवाल विश्विद्यालय की नीतिनियन्ताओं से किया ही जाना चाहिए ।